अमृतसर के श्री हरमंदिर साहिब में आज बंदी छोड़ दिवस मनाया जा रहा है। जिसे लेकर श्री अकाल तख्त साहिब घी के दीये जलाने के आदेश जारी किए हैं। वहीं, दुर्गियाना मंदिर में आज दीवाली मनाई जाएगी।
लाइटों की सजावट न करने के आदेश
बता दें कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी रघबीर सिंह ने कल ही 1 नवंबर 1984 के सिख नरसंहार के 40 साल पूरे होने के मद्देनजर सिख समुदाय को आदेश दिया था कि 1 नवंबर को बंदी छोड़ दिवस के अवसर पर केवल घी के दीपक जलाकर ही त्योहार मनाया जाए और बिजली की सजावट न की जाए।
नहीं की जाएगी आतिशबाजी
दिल्ली दंगों की 40वीं बरसी के मौके पर टेंपल में दिवाली के दौरान आतिशबाजी नहीं की जाएगी।
क्यों मनाया जाता हैं बंदी छोड़ दिवस ?
जहां भगवान श्रीराम के 14 साल बाद लौटने की खुशी में दिवाली का पर्व मनाया जाता है, वहीं, श्री गुरु हरगोबिंद जी की ओर से 52 राजाओं को जहांगीर की कैद से छुड़वाने के उपलक्ष्य में बंदी छोड़ दिवस भी मनाया जाता है। इस बार यह दोनों ही आज यानि 1 नवंबर को मनाए जा रहे हैं। बता दें कि श्री दुर्गियाना तीर्थ की ओर से आज दीवाली मनाई जा रही है। वहीं गोल्डन टेंपल में भी बंदी छोड़ दिवस आज मनाया जाएगा।
क्या है इसका इतिहास और महत्व
बंदी छोड़ दिवस का इतिहास काफी पुराना है। इसका संबंध मुगलों से है। जानकार बताते हैं कि मुगलों ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में ले लिया था। इसे जेल में तब्दील कर दिया था। इसमें मुगल सल्तनत के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को कैद करके रखा जाता था।
52 राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु को कैद कर रखा था
उस वक्त मुगल सल्तनत के बादशाह जहांगीर थे। उन्होंने इस जेल में 52 राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को कैद रखा था। लेकिन जहांगीर को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्हें गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा।
इस तरह कैद से मिली थी मुक्ति
मुगल बादशाह ने हरगोबिंद साहिब को जेल से लौटने का आग्रह किया। गुरु साहिब ने कहा कि वह अकेले नहीं जाएंगे। उन्होंने कैदी राजाओं को भी मुक्त कराने की बात कही। गुरु साहिब के लिए 52 कली का चोला (वस्त्र) सिलवाया गया। 52 राजा जिसकी एक-एक कली पकड़कर किले से बाहर आ गए। इस तरह उन्हें कैद से मुक्ति मिल सकी थी।
गुरु हरगोबिंद साहिब दीवाली के दिन अमृतसर पहुंचे थे। गुरु साहिब ग्वालियर के किले से 52 राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्त कराकर अकाल तख्त साहिब पहुंचे थे। उस वक्त आतिशबाजी के आलावा युद्ध कौशल दिखाया गया था। पूरे अमृतसर शहर को दीयों की रोशनी से सजाया गया था। इस दिन को ‘दाता बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
दीये और आतिशबाजी करते हैं सिख
इस खास दिन पर सिख संगठनों द्वारा धार्मिक समागमों का आयोजन किया जाता है। समागम में कीर्तन और कथा करवाई जाती हैं। इस दिन को ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया जाता है। सिख समुदाय के लोग बड़े स्तर पर आतिशबाजी करते हैं। गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं। बंदी दिवस के मौके पर श्रद्धालु गुरुद्वारे में नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।