यूं तो स्ट्रोक की समस्या अकसर बुजुर्गों में होने वाली समस्या है लेकिन कई बार यह समस्या शिशु के जन्म से पहले उसके दौरान और उसके तुरंत बाद भी स्ट्रोक का खतरा होता है। ऐसे में प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का खास ध्यान रखना बेहद जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि मां की प्रेग्नेंसी या फिर उसकी डिलीवरी के समय में आने वाली समस्या को रोक जा सके।
लेकिन कई बार प्रेग्नेंसी के समय थोड़ी सी गलती या गलत लाइफस्टाइल होने की वजह से बच्चों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल हाल ही में एक ऐसा ही मामला लंदन से सामने आया है। जहां डिलीवरी के समय मां को लंबे समय तक दर्द महसूस हुआ जिसके बाद नवजात शिशु को न्योनटल स्ट्रोक का सामना करना पड़ा। ऐसे में आइए जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में साथ ही न्योनटल स्ट्रोक क्या होता है।
जानिए क्या था पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 39 वर्षीय महिला हनी एट्रिग को 39 घंटों तक लेबर पेन हुआ। जिसके बाद डॉक्टरों ने महिला की डिलीवरी की। बता दें कि डिलीवरी के समय नवजात शिशु सोफी का कंधा फंस गया था।
इस बीच सोफी ने सांस लेना बंद कर दिया था और उसे न्योनटल स्ट्रोक आ गया था। वहीं शिशु को जिंदा रहने के लिए ई संघर्षों का सामना करना पड़ा। हालांकि शिशु को बचाने के लिए उसे 3 हफ्तों तक आईसीयू में भर्ती रखा गया। अब वो शिशु ठीक है।
न्योनटल स्ट्रोक क्या है
न्योनटल स्ट्रोक बच्चों में होने वाली एक समस्या है। यह स्ट्रोक तब होता है जब जन्म के बाद पहले 28 दिनों के भीतर शिशु के मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बाधित या अवरुद्ध हो जाता है। यदि स्ट्रोक पहले सात दिनों के भीतर होता है तो इसे प्रसवकालीन स्ट्रोक कहा जाता है।
नवजात स्ट्रोक के दौरान, मस्तिष्क को ऑक्सीजन की कमी और रक्त वाहिकाओं में रुकावट का अनुभव होता है। नवजात स्ट्रोक की घटना दर लगभग 4,000 शिशुओं में से 1 है। हालांकि वास्तव में परेशानी अधिक भी हो सकती है क्योंकि नवजात स्ट्रोक का पता लगाना काफी मुश्किल होता है।
शिशुओं में न्योनटल स्ट्रोक के लक्षण
बता दें कि शिशुओं में बाहरी लक्षण का पता आसानी से नहीं लग पाता है लेकिन समय के साथ जब वो बड़े होते हैं तो इनके लक्षण साफ नजर आने लगते हैं। जैसे-
शिशु में बहुत ज्यादा सुस्ती होना
शरीर के एक तरफ का हिस्सा काम न करना
कई बार कंधे या पैरों में ट्विचिंग होना