कैंसर का नाम सुनते ही हर इंसान कांप उठता है। फिर चाहे वो किसी भी तरह का हो। कितना ही खतरनाक क्यों न हो। इसके कई प्रकार होते हैं जिनमे महिलाओं में होने वाला सर्वाइकल कैंसर बहुत ही आम है।
यह महिलाओं में होने वाले सबसे गंभीर कैंसरों में से एक माना जाता है। ब्रेस्ट कैंसर के बाद भारत में इस बीमारी से कई महिलाएं पीड़ित है। वहीँ ये महिलाओं की मौत का एक भी एक मुख्य कारण बनता जा रहा है।
इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल जनवरी के महीने को सर्वाइकल कैंसर अवेयरनेस मंथ के तौर पर मनाया जाता है। जानते हैं महिलाओं को सबसे ज्यादा क्यों होता है सर्वाइकल कैंसर का खतरा।
महिलाएं क्यों हो रहीं हैं इससे ग्रस्त
दरअसल सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय ग्रीवा में होता है। इसे गर्भाशय के मुंह का भी कैंसर भी कहा जाता है। महिलाओं में गर्भाशय और योनि को जोड़ने वाले हिस्से को सर्विक्स कहा जाता हैं। इसी कारण से इसमें होने वाले कैंसर को सर्वाइकल कैंसर का नाम दिया गया है।
यह कैंसर एचपीवी यानी कि ह्युमन पैपिल्लोमा वायरस के कारण फैलता है। जब एचपीवी शरीर के अंदर जाता है तो यूटरस के अंदरूनी हिस्से को नुकसान होता है और धीरे-धीरे ये कैंसर का रूप ले लेता है। वहीँ इसके लक्षण इतने आम होते हैं की महिलाओं को पता ही नहीं चलता है।
30 से उम्र की उम्र की महिला होती है प्रभावित
एक्सपर्ट के मुताबिक 30 की उम्र की महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होने का ज्यादा खतरा होता है। इसके होने के पीछे कई कारण हैं, जिसमें से है एक से अधिक साथी के साथ संबंध बनाना, खराब हाइजीन, बर्थ कंट्रोल पिल्स का इस्तेमाल करना, स्मोकिंग और परिवार का इतिहास इस कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
अगर इस तरह के लक्षण दिखते हैं तो बिना देरी के डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
संबंध बनाने के बाद वजाइना से ब्लीडिंग
संबंध बनाने के दौरान दर्द
योनि से डिस्चार्ज
पेशाब के दौरान दर्द होना
पेल्विक में दर्द महसूस होना
बार-बार पेशाब के लिए जाना
सर्वाइकल कैंसर का पता इस तरह करें
यूँ तो सर्वाइकल कैंसर के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं,लेकिन फिर भी आपको अगर शक लग रहः ई तो आप इसकी स्क्रीनिंग टेस्ट करा लें।
इसके लिए पैप स्मीयर टेस्ट सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट माना जाता है। इसमें गर्भाशय ग्रीवा के ऊतकों का सैंपल लिया जाता है। अगर इसमें एक जैसे सेल्स नहींमिलते हैं तो एचपीवी टेस्ट कराया जाता है।
इन जांचों से सर्वाइकल कैंसर का पता आसानी से लगाया जा सकता है। पता लगाने के बाद तुरंत इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है।