SYL मुद्दे को लेकर एक बार फिर पंजाब और हरियाणा के सीएम की मीटिंग होगी। इसकी जानकारी खुद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दी है। यह मीटिंग 28 दिसंबर को शाम 4 बजे चंडीगढ़ में होगी जिसमें जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत भी मौजूद होंगे।
2 महीने सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
हरियाणा और पंजाब के सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद पर दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को कहा कि वह इस मुद्दे पर राजनीति न करे।
पंजाब सरकार कानून से ऊपर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को सख्त आदेश देने के लिए मजबूर न करें। सुप्रीम कोर्ट पंजाब सरकार के रवैये से काफी नाराज दिखी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि पंजाब सरकार इस मामले में आगे बढ़े।
अगर सुप्रीम कोर्ट समाधान की तरफ बढ़ रही है तो पंजाब सरकार भी पॉजिटिव रुख दिखाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में होने वाली डेवलपमेंट के बारे में रिपोर्ट देने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई अब जनवरी 2024 में होगी।
केंद्र सरकार को सर्वे के दिए ऑर्डर
हरियाणा सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2 दशक से यह विवाद उलझा हुआ है। पंजाब सरकार नहीं चाहती कि इसका हल निकले। पिछली 2 मीटिंगों में कोई हल नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा कि पंजाब की तरफ SYL नहर की मौजूदा स्थिति सर्वे की प्रक्रिया शुरू की जाए। जिसमें यह देखना है कि कितनी जमीन है और कितनी नहर बनी हुई है। इसमें पंजाब सरकार को साथ देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे के लिए केंद्र से आने वाले अधिकारियों को पंजाब सरकार को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने को कहा है।राजस्थान सरकार ने भी कहा कि पंजाब सरकार का रुख इस दिशा में आगे बढ़ने के जैसा नहीं लग रहा है।
जानें क्या है SYL मुद्दा
1966 में पंजाब के पुनर्गठन से पहले संसाधनों को दो राज्यों के बीच विभाजित किया जाना था, तो अन्य दो नदियों, रावी और ब्यास के पानी को बंटवारे की शर्तों के बगैर फैसले के छोड़ दिया गया था।
हालांकि, रिपेरियन सिद्धांतों का हवाला देते हुए,पंजाब ने हरियाणा के साथ दो नदियों के पानी के बंटवारे का विरोध किया। रिपेरियन वाटर राइट्स का सिद्धांत एक ऐसी प्रणाली है जिसके तहत किसी जल निकाय से सटे भूमि के मालिक को पानी का उपयोग करने का अधिकार है।
पंजाब का यह भी कहना है कि उसके पास हरियाणा के साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। पंजाब के पुनर्गठन के एक दशक बाद, केंद्र ने 1976 में एक अधिसूचना जारी की कि दोनों राज्यों को 3.5 मिलियन एकड़-फीट (MAF) पानी प्राप्त होगा।
इसके बाद 31 दिसंबर, 1981 को पंजाब- हरियाणा और राजस्थान ने ‘समग्र राष्ट्रीय हित और पानी के एक्स्ट्रीम उपयोग के लिए’ रावी और ब्यास के पानी को फिर से आवंटित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
समझौता उपलब्ध पानी के पुन र्मूल्यांकन पर आधारित था। ब्यास और रावी में बहने वाले पानी का अनुमान 17.17 MAF था। इसमें से 4.22 MAF पंजाब को, 3.5 MAF हरियाणा को और 8.6 MAF राजस्थान को तीनों राज्यों के समझौते से आवंटित किया गया था।
1966 में प्रस्तावित, हरियाणा को पंजाब से बाहर किए जाने से पहले, सतलुज यमुना लिंक सतलुज और यमुना को जोड़ने वाली 211 किलोमीटर लंबी नहर है। जहां हरियाणा में नहर का 90 किलोमीटर का हिस्सा 1980 तक पूरा हो गया था, वहीं पंजाब में शेष 121 किलोमीटर का हिस्सा रुका हुआ है।
हरियाणा ने जून 1980 तक अपने क्षेत्र में परियोजना पूरी कर ली थी, हालांकि पंजाब में काम 1982 में शुरू हुआ था, लेकिन विपक्षी शिरोमणि अकाली दल (SAD) के विरोध के कारण इसे रोक दिया गया था।