Mother Parvati was cursed to not get pregnant : भगवान शिव और माता पार्वती की संतान गणेश जी, कार्तिकेय और अशोक सुंदरी की बहुत सी कथाएं प्रचलित है। वैसे तो यह तीनों ही शिव और पार्वती की संताने हैं लेकिन माता पार्वती ने इनमें से किसी को नौ महीने के लिए अपने गर्भ में नहीं रखा था। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती एक श्राप के कारण गर्भवती होने का सुख प्राप्त नहीं कर पाई थी लेकिन गर्भवती न होने के बाद भी वह संसार में गणेश जी, कार्तिकेय और अशोक सुंदरी की माता कहलाई. जानें फिर कैसे मिला संतान सुख...
पौराणिक कथा शिव पुराण
शिव पुराण के अनुसार, एक बार वज्रांग के पुत्र तारकासुर ने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर तारकासुर को मनचाहा वरदान दे दिया। तारकासुर ने ब्रह्मा जी से यह वरदान मांगा कि दुनिया में आपके द्वार बनाई गई कोई चीज मुझसे ज्यादा बलवान न हो। दूसरा वरदान यह था कि वह हमेशा के लिए अमर रहे।
तारकासुर का आतंक
तारकासुर ने ब्रह्मा जी से वरदान मिलते ही पूरी दुनिया आतंक मचाना शुरू कर दिया। उसने स्वर्ग लोक में देवताओं के साथ धरती पर आम मनुष्यों और ऋषियों को सताना शुरू कर दिया। तारकासुर ने स्वर्ग के राजा इंद्र को हराकर उनका वाहन ऐरावत हाथी, खजाना और नौ सफेद घोड़े छीन लीए। ऋषियों ने भी डर के मारे कामधेनु गाय तारकासुर को दे दी थी लेकिन इसके बाद भी उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा था।
ब्रह्मा के पास गए देव
तारकासुर ने तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त करने के बाद स्वर्ग से देवताओं को वहां से निकाल दिया। जिसके बाद सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे विनती करते हुए कहा कि प्रभु तारकासुर से हमारे प्राणों की रक्षा करें। ब्रह्मा जी देवताओं को कष्ट में देखकर दुखी हुए और उन्होंने देवताओं से कहा कि इस स्थिति में मैं कुछ नहीं कर सकता हूं क्योकि तारकासुर के तप से खुश होकर मैंने ही उसे सबसे बलशाली होने का वरदान दिया था।
ब्रह्मा जी ने बताया उपाय
ब्रह्मा जी ने देवताओं को उपाय बताया कि तारकासुर का विनाश सिर्फ भगवान शिव की संतान द्वारा ही होगा। यह सुनकर सभी देवता हैरान हो गए क्योंकि माता सती ने तो अपना शरीर योगाग्नि में नष्ट कर दिया था तो यह कैसे संभव हो पाएगा। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि सती दोबार पार्वती रूप में जिसके बाद उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ हैं। उसके बाद शिव-पार्वती की होने वाली संतान द्वारा ही तारकासुर का वध होगा।
माता पार्वती ने मांगी मदद
महादेव के हमेशा ही तपस्या में लीन रहने के कारण माता पार्वती ने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। माता पार्वती ने अपने दिल और आत्मा से शिव के प्रति समर्पित थीं, इसलिए सभी देवी-देवताओं ने शिव का दिल जीतने में मदद करने का फैसला किया। भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बाद देवताओं ने कामदेव माता पार्वती की सहायता के लिए भेजा ताकि शिव पार्वती की संतान द्वारा उनका उद्धार हो सकें।
कामदेव का भस्म होना
देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। तब कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ कैलाश पहुंचे। जिसके बाद कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या को भंग कर दिया। तपस्या भंग होने से भगवान शिव क्रोध में आ गए और कामदेव को वहीं पर भस्म कर दिया। कथा के अनुसार, कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को भस्म होकर मरा हुआ देख दुख हो गई। देवी रति ने माता पार्वती से कहा कि मेरे पति कामदेव सिर्फ तपस्या का मान रखने के लिए आए थे।
मां पार्वती को मिला श्राप
देवी रति ने माता पार्वती से कहा कि तुम्हारी वजह से मैंने न सिर्फ अपने पति को खो दिया बल्कि मां बनने का सुख भी खो दिया है। अपने पति की राख हाथों में लेकर माता पार्वती को श्राप दे दिया कि वह कभी भी अपने गर्भ से किसी संतान को जन्म नहीं दे पाएंगी। शिव पुराण के अनुसार, बाद में जब शिवजी का क्रोध शांत हुआ एवं समस्त देवताओं ने तारकासुर को मिले वरदान के बारे में अवगत कराया तो कामदेव की पत्नी रति के कहने पर शिव ने कामदेव को दोबारा जीवित कर दिया था।
कैसे मिला संतान सुख
रति के श्राप के कारण माता पार्वती ने गर्भ से किसी शिशु को जन्म नहीं दिया था लेकिन भगवान शिव से मिले वरदान के कारण उन्हें संतान का सुख मिल पाया था। जिसमें गणेश जी का माता पार्वती के शरीर पर हल्दी का उबटन उतारा तो इससे एक पुतला बना दिया और उसमें प्राण डाल दिए। इस तरह भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु उस वृक्ष से यह वर माँगा कि उन्हें एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ।