Making children self-sufficient by running food stalls : उत्तराखंड की काकुली विश्वास पिछले दो सालों से दिल्ली के पंचशील पार्क, मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक के पास एक फ़ूड स्टॉल चला रही हैं, ताकि अपने एक दिव्यांग बेटे और दो बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बना सकें। काकुली इस बात की उदाहरण हैं कि हिम्मत और जुनून से हम अपना भविष्य बेहतर बना सकते हैं। उन्होंने दो साल पहले ही अपने इस बिज़नेस की शुरुआत की थी। आज वह इसी बिज़नेस से अपने तीनों बच्चों का खर्च उठा रही हैं। काकुली ने बताया कि उनके पति भी इस बिज़नेस में उनकी मदद करने लगे हैं। काकुली ने बिज़नेस भले ही मजबूरी में शुरू किया था, लेकिन अब यही उनकी पहचान बन गया है और इसके ज़रिए ही उनका घर खर्च भी आराम से चल रहा है।
काम करने के अलावा दूसरा विकल्प था ही नहीं
दरअसल, काकुली के जीवन की परीक्षा शादी के बाद से ही शुरू हो गई थी। उस समय उनके पति की कोई स्थायी नौकरी नहीं थी और फिर बाद में उनके ऊपर उनके एक और दो बच्चियों की जिम्मेदारी भी आई। काकुली के सामने बच्चों को संभालते हुए बाहर जाकर काम करना काफी मुश्किल हो गया था। लेकिन उनके पास काम करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प था ही नहीं।
हुनर ने दिला दी जापान में नौकरी, ज़्यादा दिन नहीं
काकुली बताती हैं कि उस समय उन्होंने अपने खाना बनाने के हुनर का इस्तेमाल करके, लोगों के घर में खाना बनाना शुरू किया और उनके इसी हुनर ने उन्हें जापान में नौकरी भी दिला दी। इसके बाद काकुली अपने बच्चों को पति के पास छोड़कर एक साल के लिए जापान चली गईं। लेकिन बच्चों को छोड़कर विदेश में वह ज़्यादा दिन नौकरी नहीं कर पाईं।
घर संभालने के लिए शुरू किया है ये फ़ूड स्टॉल
काकुली जब भारत वापस आईं, तब कोरोना के कारण उनके पति की नौकरी फिर चली गई थी। ऐसे में उन्होंने अपने मन में फ़ूड से जुड़ा कोई बिज़नेस करने का मन बनाया और अपनी बहन और भाभी के साथ मिलकर एक छोटे से फ़ूड स्टॉल की शुरुआत की। उन्होंने मिलकर बिज़नेस तो शुरू किया, लेकिन धीरे-धीरे वे दोनों अलग हो गए और काकुली फिर अकेली रह गईं। उनके मन में भी काम बंद करने के ख्याल आया।
सुबह से देर शाम तक मेहनत करती हैं काकुली
लेकिन बच्चों की ज़िम्मेदारी और ग्राहकों के प्यार के कारण उन्होंने काम बंद करने के बजाय इसे अकेले ही जारी रखा। काकुली विश्वास अपने छोटे से फ़ूड स्टॉल पर, सुबह से लेकर देर शाम तक मेहनत करती हैं। इसे शुरू करने के पीछे उनका एक ही मकसद है कि उनके तीनों बच्चे एक दिन पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बन जाएं। हमें आशा है कि एक दिन ज़रूर वह अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बना देंगी।