Lankesh has been worshiping Ravana for 49 years, he is a devotee of Dashanan : भगवान राम के भक्त तो सब हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में एक ऐसा भी भक्त है जो राम नहीं बल्कि रावण की पूजा करता है। इन्होंने घर पर अपने रावण का मंदिर भी बनवाया है। प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा करता है। यहां तक कि इसका नाम भी लंकेश ही पड़ गया। जबलपुर के पाटन क्षेत्र के रहने बाले संतोष नामदेव, जिन्हें लोग ‘लंकेश’ के नाम से जानते हैं। वह पिछले 49 वर्षों से दशानन रावण की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। जहां नवरात्रि के अवसर पर पूरा देश देवी की भक्ति में डूबा होता है तो वहीं संतोष दशानन रावण की प्रतिमा स्थापित कर उसकी आराधना करते हैं।
राम मंदिर में दर्शन करने की इच्छा
यह परंपरा उन्होंने 1975 में शुरू की और तब से हर साल नवरात्रि की पंचमी को रावण की प्रतिमा स्थापित करते हैं और दशहरे पर इसका विसर्जन करते हैं। उनके इस अनोखे धार्मिक अभ्यास ने उन्हें एक अलग पहचान दी है, जो समाज की मुख्यधारा से बिल्कुल भिन्न है। आगे संतोष नामदेव ने कहा कि अब राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है इसलिए रामलला के दर्शन करने की इक्छा है, क्योंकि दशानन रावण ने भी अंतिम समय में भगवान श्रीराम के दर्शन किए थे तो उनकी भी इच्छा है कि वह भी अयोध्या राम मंदिर जाकर श्रीराम के दर्शन करें। दशहरा के बाद वह अयोध्या जाकर इस संकल्प को पूरा करेंगे।
अत्यंत बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति
संतोष नामदेव का कहना है कि रावण अत्यंत बुद्धिमान और ज्ञानी व्यक्ति था। उनके अनुसार, रावण के गुणों को अक्सर गलत समझा गया है। संतोष मानते हैं कि रावण ने जो भी किया वह अपने राक्षस कुल की भलाई के लिए किया। रावण की सीता के प्रति सम्मान की भावना को संतोष विशेष रूप से महत्व देते हैं क्योंकि रावण ने सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें अशोक वाटिका में रखा और किसी भी प्रकार के अन्य प्राणियों को उनके पास जाने की अनुमति नहीं दी। रावण को लोग बुराई का प्रतीक जरुर मानते हैं, लेकिन उनमें कोई भी बुराई नहीं थी।
रामलीला में रावण का किरदार
संतोष की रावण भक्ति के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। वे बचपन में रामलीला में रावण की सेना में सैनिक का किरदार निभाते थे। बाद में उन्हें रावण की भूमिका निभाने का मौका मिला और वे इस भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रावण को अपना गुरु और ईष्ट मान लिया। तबसे वे रावण की पूजा कर रहे हैं। संतोष को लोग लंकेश के नाम से भी बुलाते हैं। संतोष के बेटे भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके दोनों बेटों के नाम मेघनाद और अक्षय हैं। जो रावण के पुत्रों के नाम पर रखे गए हैं। वहीं अक्षय और मेघनाथ के पुत्रों के नाम भी रावण के पोतों के नाम पर रखे गए हैं।
निकालते हैं रावण की शोभायात्रा
संतोष का मानना है कि जो कुछ भी उन्होंने अपने जीवन में हासिल किया है वह रावण की भक्ति का ही परिणाम है। उनके परिवार और आस-पास के लोग भी इस परंपरा में शामिल होते हैं और हर साल धूमधाम से रावण की शोभायात्रा निकालते हैं। समाज में भले ही रावण की बुराइयों को अधिक महत्व दिया जाता हो, लेकिन संतोष रावण की अच्छाइयों को अपना आदर्श मानते हैं और इन्हीं गुणों को अपनी जीवन यात्रा का आधार बना चुके हैं। लंकेश की इस अनोखी भक्ति ने उन्हें पूरे महाकौशल क्षेत्र में चर्चित बना दिया है। जहां अधिकांश लोग भगवान राम की पूजा करते हैं तो वहीं संतोष रावण की पूजा कर अलग पहचान बना चुके हैं।
पेशे से टेलर हैं संतोष नामदेव
संतोष नामदेव पेशे से टेलर हैं, जिन्हें लोग लंकेश के नाम से जानते हैं। संतोष कहते हैं कि रावण में कोई बुराई नहीं थी। न ही रावण ने किसी भी नशे का सेवन किया। इसलिए संतोष ने अपने आराध्य से प्रेरित होकर यह प्रण लिया कि वह शराब पीने वालों के कपड़े नहीं सिलेंगे। दुकान में आने वाले हर ग्राहक से पहले वह पूछताछ करते हैं। इसके बाद उनके कपड़े सिलते हैं। संतोष बताते हैं कि वह अयोध्या में स्थित राम मंदिर के अंदर अभी तक नहीं गए। जब भी अयोध्या जाते हैं तो सरयू नदी में स्नान करके वापस लौट आते हैं, लेकिन अंदर नहीं जाते।