Increasing Pressure of Climate Change : जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दबाव का नतीजा है कि दुनिया में गर्मी और सूखे के रिकॉर्ड टूटकर नए बन रहे हैं. हालात को देखते इस बात की जरूरत पहले से अधिक हो गई है कि दुनिया की सरकारें और तमाम नेतृत्व इसके प्रभाव को कम करने के लिए कारगर उपायों को लागू करने में जोर लगाएं. ऐसे में दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस (सीओपी28) पर सभी की निगाहें हैं दुबई के 28वें जलवायु सम्मेलन में अब जलवायु परिवर्तन के लेकर अहम फैसलों की उम्मीद है। सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के बीच भागीदारी और जिम्मेदारी भी तय होना है. जिसमें कई अहम सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे और उम्मीद भी की जा रही है कि जिनमुद्दों पर जलवायु परिवर्तन को रोकने वाले प्रयासों पर गतिरोध हो रहा था, वे भी सुलझा लिए जाएंगे. वहीं इसका भी आंकलन हो रहा है कि बदलते परिवेश और आपात स्थिति बनने की बढ़ती संभावना में अब किसी तरह की नीति बन सकती है।
दो सप्ताह का सम्मेलन
इस दो सप्ताह के सम्मेलन में दुनिया के तमाम देश मिलकर जीवाश्म ईंधन के भविष्य पर विचार करने के साथ ही, हरित ऊर्जा की ओर होने वाले संक्रमण के लिए विकासशील देशों के लिए वित्त व्यवस्था करने, और वैश्विक जलवायु विकास का आंकलन जैसी गतिविधियों का खास विश्लेषण करेंगे।
लक्ष्यों की होगी समीक्षा
बदलते हालात में सीओपी 28 में एक बार फिर से 2015 के पेरिस सम्मेलन में निर्धारित किए गए महत्वकांक्षी लक्ष्यों की समीक्षा की जाएगी जिसमें दुनिया के औसत दशकीय तापमान में बढ़ोत्तरी को दो डिग्री सेल्सियस तक रोकने की बात की गई थी और कहा था कि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना होगा।
कारगर हो कार्यक्रम
गौर करने वाली बात यह है कि जहां इस दिशा में किए जा रहे वर्तमान प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो रहे हैं, सम्मेलन से उम्मीद की जा रही है कि इस बार जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए समीक्षा करेगी. हरित तकनीकों में भारी निवेश कर कार्बन उत्सर्जन कम करने के बड़े उपाय अपनाए जा सकते हैं।
संकट के अहम पहलू
जलवायु के इस संकट के दो अहम पहलू पहले तो कार्बन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना बहुत जरूरी है, तो वहीं ऐसे हरित ऊर्जा वाले उपाय भी अपनाने की जरूरत हो जो ग्रीन हाउस उत्सर्जन में बड़ा योगदान दे सकें. जलवायु कार्यों के लिए जिम्मेदारियों का बंटवारा सबसे बड़ा विषय होगा।
भागीदारी व जिम्मेदारी?
इसमें अहम सवाल यह होगा कि क्या कार्बन उत्सर्जन में अधिक और ऐतिहासिक योगदान की वजह से अमीर देशों को अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए या फिर दुनिया के सभी देशों को समान भागीदारी और जिम्मेदारी से काम करना होगा. 2025 तक दुनिया के देशों के अपने राष्ट्रीय उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की समीक्षा की उम्मीद है।
बड़ी चुनौती यह भी
अभी तक दुनिया के देशों में जीवाश्म ईंधन खत्म करने के लक्ष्य या कार्यक्रम पर सहमति नहीं बन सकी है जो की एक बड़ी समस्या है. जहां यूरोपीय संघ, अमेरिका और जलवायु के लिहाज से संवेदनशील देश चाहते हैं की जीवाश्म ईंधन के पूरे खात्मे पर सहमति बने तो वहीं रूस सहित जी20 के कई सदस्य देश इसका विरोध कर रहे हैं।
नुकसान की भरपाई
इस सम्मेलन में कार्बन भंडारण संबंधी तकनीके, अक्षय ऊर्जा क्षमता, जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी जैसे और भी मुद्दे हैं जिनकी हल निकालने के प्रयास होंगे. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों के खर्च की जिम्मेदारी कैसे बंटेगी यह भी तय करना आसान काम नहीं होगा. लेकिन इन सभी समस्याओं या गतिरोध के हल निकालना बहुत जरूरी है।