Global Warming and Climate Change : अभी तो दुनिया को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव वायुमडंल में ही दिखाई दे रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल ही नहीं बल्कि महासागरों को भी बड़ा खतरा है. लेकिन जिस तरह से महासागरों पर जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है, उससे हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं। हाल ही में नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक बहुत बड़े खतरे का पता लगा है। उन्होंने पाया है कि गहरे महासागरों में जमी हुई मीथेन, जिसे बर्फीली आग भी कहते है। महाद्विपीय पट्टी के महाद्वीपीय ढाल से उसके किनारों तक आ रही है जो बाद में एक टाइम बम साबित होगी।
वायुमंडल पहुंचने का खतरा
इस मामले में चिंताजनक बात यह है कि शोधकर्ताओं को यह तक पता चला है कि यह हिस्सा 40 किलोमीटर तक खिसक चुका है जिसका मतलब यही है कि और अधिक मीथेन पर वायुमंडल तक पहुंचने का खतरा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण महासागर और गर्म होते जा रहे हैं। इतनी बड़ी मात्रा में अगर मीथेन वायुमडंल में पहुंच जाती तो वह वायुमंडल को बहुत ज्यादा गर्म कर सकती है।
कैसे की गई यह पड़ताल?
वैज्ञानिकों ने उन्नत त्रिआयामी भूकंपीय प्रतिबिम्बन तकनीकों का उपयोग कर उत्तरपश्चिम अफ्रीका के मॉरिशियाना के तटों पर जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली वार्मिंग की वजह से से अलग होने वाले हाइड्रेट की पड़ताल की। उन्होंने एक ऐसा मामला भी पाया कि अलग होने वाली मीथेन 40 किलोमीटर तक आगे किनारे की ओर आ गई है और यह पिछले गर्म दौर में पानी के अंदर से निकल रही थी जिन्हें पॉकमार्क कहते हैं।
क्या होती है बर्फीली आग
मीथेन हाइड्रेट को ही फायर आइस यानी बर्फीली आग कहा जाता है। इसकी संरचना बर्फ की तरह होती है, जो गहरे महासागरों के तल में दफन होती है। महासगारों के तल में भारी मात्रा में ऐसी मीथेन जमा है। महासागरों के गर्म होने पर यह पिघलने लगती है और ऊपर आकर वायुमंडल में मिलने के बाद ग्लोबल वार्मिग में योगदान देती है।
उम्मीद से ज्यादा खतरा
न्यूकासल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रिचर्ड डेविस ने बताया कि उन्होंने कोविड लॉकडाउन में इलाके में 23 पॉकमार्क खोजे थे उनकी पड़ताल ने दर्शाया कि ये इसलिए बने थे कि इस क्षेत्र के महासागर के महाद्विपीय ढाल से निकल रही है। पहले वैज्ञानिकों को लग रहा था कि इस हाइड्रेट पर जलवायु के गर्म होने का कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इस अध्ययन में दर्शाया गया है कि ऐसा नहीं है।
अहम क्यों है यह खोज
यह एक अहम खोज मानी जा रही है। अभी तक इस शोध में हाइड्रेट के स्थायित्व क्षेत्र के उथले हिस्से पर ही ध्यान केंद्रित रखा गया था क्योंकि शोधकर्ताओं को लग रहा था केवल यही हिस्सा जलवायु विविधताओं के प्रति संवेदनशील है। नए आंकड़े दर्शाते हैं कि बहुत बड़ी मात्रा में मीथेन निकल सकती है और जलवायु तंत्रों में हाइड्रेट की भूमिका को बेहतर तरीके से समझने की जरूरत है।
16 फीसदी की भागीदारी
मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा मानवजनित ग्रीनहाउस गैस है। अमेरिका की एनवायर्नेमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी के आंकड़े दर्शाते हैं कि मीथेन की वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों में 16 फीसदी की भागीदारी है। इस अध्ययन के नतीजे हमारे बदलती जलवायु पर मीथेन के असर से निपटने और उसका पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकते हैं।