BJP is shying away from blooming lotus in Kashmir : भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता गाहे-बगाहे यह जिक्र कर ही देते हैं कि कश्मीर की अशांति के लिए तीन परिवार जिम्मेदार हैं। ये तीन परिवार कौन हैं, किसी से छिपा नहीं है। अब्दुल्ला परिवार, मुफ्ती परिवार और नेहरू-गांधी परिवार। बीजेपी कश्मीर की बर्बादी के पीछे इन्हीं तीन परिवारों को जिम्मेदार मानती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि परिवारवादी पार्टियों की वजह से कश्मीर में पत्थरबाजी, आतंकवाद और अशांति दशकों तक बरकरार रही। ये तीन परिवार ही हैं जिनकी वजह से बीजेपी की सियासी तौर पर कश्मीर घाटी में दाल नहीं गल रही है। अनुच्छेद 370 हट गया है लेकिन बीजेपी के लिए पाबंदी नहीं हटी है। लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दिग्गज नेताओं की सियासत ही 'मुसलमान' के इर्दगिर्द घूम रही है।
अनंतनाग, बारामुला और श्रीनगर का दम बाकी
कश्मीर घाटी में 3 लोकसभा सीटें आती हैं. अनंतनाग, बारामुला और श्रीनगर. तीनों लोकसभा सीटों पर बीजेपी के वोटर बेहद कम हैं। ये मुस्लिम बाहुल सीटें हैं। यहां की हिंदू आबादी, बढ़ते आतंकवाद और मुस्लिमों के एक तबके के विरोध के बाद भाग गई थी। कश्मीर में जब कश्मीरी हिंदुओं का दमन शुरू हुआ तो साल 1990 में 44 हजार से भी ज्यादा परिवारों के 1,54,712 से ज्यादा लोगों ने पलायन किया था। घाटी से बड़ी संख्या में हिंदु खुद ही जान बचाने के लिए भाग गए थे। ऐसे में, अनंतनाग, बारामुला और श्रीनगर में बीजेपी के वोटर कम हैं। ये वही इलाके हैं, जहां सबसे ज्यादा आतंकी घटनाएं सामने आती हैं।
कश्मीर में BJP की असली चुनौती है आबादी
कश्मीर घाटी की लगभग 97 फीसदी आबादी मुस्लिम है। साल 2011 में हुए जनगणना के मुताबिक यहां करीब 85.67 लाख की मुस्लिम आबादी रहती है। कश्मीर की कुल आबादी 1.25 करोड़ है। मुस्लिम आबादी 68.31 प्रतिशत और हिंदू आबादी 28.44 प्रतिशत है। कश्मीर की तीनों लोकसभा सीटों पर हिंदू आबादी न के बराबर है। ऐसे में बीजेपी यहां जोर नहीं दे रही है। इन तीनों सीटों पर मुफ्ती परिवार, अब्दुल्ला परिवार और गांधी परिवार का असर है। इसके अलावा कश्मीर की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी हैं, जिनके वोटर इस इलाके में है। अगर गुपकार गठबंधन कायम रहता तो तय था कि यहां से महबूबा मुफ्ती व उमर अब्दुल्ला 100 फीसदी जीत दर्ज करते।
कश्मीर में किसके सहारे कमल खिलाएगी बीजेपी
बीजेपी अनंतनाग राजौरी, श्रीनगर और बारामुला से नहीं लड़ रही है लेकिन बीजेपी कुछ अघोषित अपनों को यहां से प्रमोट कर रही है। इन्हें बीजेपी तरफ से डमी कैंडीडेट कह सकते हैं। बीजेपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और सज्जाद लोन की पार्टी कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के साथ सॉफ्ट रुख रख चुकी है। 2019 में 370 हटने के बाद से ही सभी पार्टियों ने गुपकार बनाया और बीजेपी के खिलाफ सियासी लड़ाई पर उतर गए लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इन्हीं पार्टियों के भीतर ऐसी लड़ाई मची कि सबने गठबंधन तोड़कर पर्चा भर दिया। जम्मू की हिंदू बाहुल सीटों पर यही पार्टियां कांग्रेस के साथ आ गई हैं।
निर्दलीय उम्मीदवारों को भी सपोर्ट किया जा रहा है
कश्मीर की सियासत में चर्चा है कि सज्जाद लोन, बीजेपी के प्रॉक्सी उम्मीदवार हैं। वे नेशनल कॉन्फ्रेंस लीडर और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। वे बारामुला से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं के सारे उन्हें मदद दे रही है। पहले ऐसे आसार थे कि कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे गुलाम नबी आजाद को भी बीजेपी समर्थन दे सकती थी लेकिन उन्होंने अनंतनाग से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया। कश्मीर से आजाद की पार्टी डेमोक्रेटिस प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी ने अपना एक उम्मीदवार उतारा है। कई निर्दलीय उम्मीदवारों को भी सपोर्ट किया जा रहा है।
बीजेपी जानती है कदम जमाने में अभी वक्त लगेगा
अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही बीजेपी यह जानती है कि कश्मीर घाटी में कदम जमाने में अभी वक्त लगेगा। पार्टी ने व्यापक सुधार किए हैं। कई बदलाव नजर आए हैं। सड़कों से लेकर अर्थव्यवस्था तक की तस्वीर बदली है। कश्मीर में शांति है, हत्याएं कम हो रही हैं। आतंकवाद पर लगाम लगी है। युवाओं को रोजगार दिया जा रहा है। महिलाओं को उद्यमी बनाने की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन बीजेपी को लेकर वहां क्रेज जैसी स्थिति नहीं है। इन सबके बाद भी एक तबका ऐसा है, जिसे 370 हटने पर ऐतराज है। बीजेपी अभी सिर्फ विकास पर जोर दे रही है और समय का इंतजार कर रही है। बीजेपी सहयोगियों के सहारे घाटी का दिल जीतना चाहती है।