बिना किसी दवा और सर्जरी के योनि मार्ग से शिशु का जन्म हो तो उसे नॉर्मल डिलीवरी या वजाइनल बर्थ कहते हैं। आजकल दर्द को कम करने और जल्दी से डिलीवरी करवाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा है। बच्चे को जन्म देने के लिए आजकल नॉर्मल डिलीवरी (Normal Delivery)के साथ साथ सी सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी भी काफी ट्रेंड में है। अगर होने वाली मां या बच्चे के साथ कोई सेहत संबंधी कॉम्प्लिकेशन हैं तो सिजेरियन सही ऑप्शन है लेकिन आजकल लोगों को ये आसान विकल्प लगने लगा है। मगर हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि मां और बच्चे के लिए नॉर्मल डिलीवरी बेस्ट ऑप्शन है। शायद यही वजह है कि हेल्थ एक्सपर्ट के साथ साथ घर के बडे बुजुर्ग और अनुभवी लोग नॉर्मल डिलीवरी की वकालत करते हैं। बता दें कि नॉर्मल डिलीवरी जन्म का ऐसा नैचुरल तरीका है जो आगे जाकर ना केवल मां बल्कि बच्चे के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। हालांकि इसमें लेबर पेन ज्यादा होती है और इसी लेबर पेन से बचने के लिए आजकल ज्यादातर लोग सी सेक्शन करवाने लगे हैं। आपको बताते हैं नॉर्मल डिलीवरी से मां और बच्चे को क्या फायदा होता है-
नॉर्मल डिलीवरी में जल्दी रिकवरी होती है
सी-सेक्शन डिलीवरी के बाद महिलाओं को रिकवरी में कई हफ्ते और महीने लग सकते हैं। नॉर्मल डिलीवरी के कुछ घंटे बाद ही महिलाएं चल सकती हैं और अपने घर भी जा सकती हैं। दरअसल, प्रसव के दौरान शरीर में एंडोर्फिन नामक हार्मोन रिलीज होता है। ये हार्मोन दर्द को दूर करने में मदद करता है जिससे नॉर्मल डिलीवरी के बाद रिकवरी जल्दी हो जाती है।
स्तनपान समय पर करवा पाना
नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाएं शारीरिक रूप से शिशु को पहला दूध पिलाने में सक्षम होती है। ये आराम से बैठकर शिशु को स्तनपान करवा सकती हैं। प्रसव के दौरान बनने वाले हार्मोन स्तनपान में मदद करते हैं। वहीं एनेस्थीसिया और ऑपरेशन से डिलीवरी होने पर महिलाओं में कमजोरी होती है और डिलीवरी के कुछ घंटे बाद तक वो बेसुध रहती हैं, जिससे शिशु को समय पर दूध नहीं मिल पाता है।
सुरक्षात्मक बैक्टीरिया बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते है
योनि और बर्थ कैनाल से शिशु का जन्म होने पर उसे कुछ बैक्टीरिया मिलते हैं। ये सुरक्षात्मक बैक्टीरिया बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं नॉर्मल डिलीवरी के खतरे और प्रसव के बाद जटिलताएं आने का खतरा भी कम रहता है। इसमें डिलीवरी के अन्य विकल्पों की तुलना में ब्लीडिंग और टांकों से इंफेक्शन का जोखिम कम रहता है।
अगली प्रेगनेंसी में दिक्कत
अगर पहली डिलीवरी नॉर्मल हो तो दूसरी बार मां बनने पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। इससे यूट्राइन स्कार या प्लेसेंटा प्रीविया नहीं होता है। पहली नॉर्मल डिलीवरी होने पर दूसरी बार भी वजाइनल बर्थ की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चे को खतरा नहीं होता
योनि से जन्म के दौरान शिशु की छाती पर दबाव पड़ता है जिससे फेफड़ों से एम्नियोटिक फ्लूइड बाहर निकल जाता है। इससे गर्भ से बाहर आने के बाद शिशु को सांस लेने में मदद मिलती है और जन्म के बाद शुरुआती दिनों में बच्चे में सांस लेने से जुड़ी दिक्कतों का खतरा कम रहता है। नॉर्मल डिलीवरी के समय तेज दर्द और शारीरिक चुनौतियां झेलने के बाद महिलाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ता है। उन्हें ये एहसास होता है कि उन्होंने एक जीवन को जन्म दिया है।
पोस्टपार्टम केयर
नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाओं को ज्यादा समय तक अस्पताल में रूकना नहीं पड़ता है। प्रसव के बाद शिशु को लेकर वो जल्दी घर जा सकती हैं और डिलीवरी के बाद की देखभाल शुरू कर सकती हैं। सामान्य प्रसव के बाद महिलाएं शरीर की मालिश करवा सकती हैं और नहा भी सकती हैं। इससे बाहरी घावों को जल्दी भरने में मदद मिलती है। सामान्य प्रसव के बाद शरीर जल्दी मजबूत और शेप में आ जाता है और कमर दर्द भी कम रहता है।
नॉर्मल डिलीवरी में मदद करेंगे ये तरीके
अगर आप भी सी सेक्शन की बजाय नॉर्मल डिलीवरी का तरीका अपनाकर बच्चे को जन्म देना चाहती हैं तो आपको कुछ टिप्स अपनाने होंगे-
- प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली मां को तनाव से दूर रहना चाहिए।
- अपना रूटीन खान पान सही औऱ स्वस्थ रखना होगा।
- इसके अलावा शरीर को हाइड्रेट रखना भी जरूरी होता है।
- डिलीवरी के लिए डॉक्टर चुनते हुए ध्यान रखें कि उस डॉक्टर की नॉर्मल डिलीवरी कराने की दर सही हो।
- मां का वजन ज्यादा होने पर भी सी सेक्शन की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में कोशिश करें कि प्रेग्नेंसी के दौरान आपका वजन बहुत ज्यादा ना बढ़ जाए।
- इसके अलावा पॉजिटिव लाइफस्टाइल अपनाएं।