Sunni and Shia, there are 6 big differences between them, you will not believe after knowing : हमारी दुनिया में मुस्लिम समाज दो प्रमुख वर्गों में विभाजित है-सुन्नी और शिया। सुन्नी मुसलमान दुनिया भर में मुस्लिम आबादी का लगभग 80% हिस्सा बनाते हैं, जबकि शिया मुसलमानों की संख्या लगभग 20% है। भारत में यह अनुपात 86% सुन्नी और 14% शिया के करीब है। शिया मुसलमान यह मानते हैं कि हज़रत अली हुजूर के बाद पहले खलीफा थे, जबकि सुन्नी मुसलमान तीन अन्य खलीफाओं-हज़रत अबू बक्र, हज़रत उमर, और हज़रत उस्मान-को भी मानते हैं। इन दोनों समूहों के बीच धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं में कई अंतर हैं, जिनकी वजह से इनके बीच कई प्रकार की गलतफहमियां भी पनपती हैं।
धार्मिक मान्यताओं में अंतर
सबसे प्रमुख अंतर दोनों समूहों के कलमे में देखा जाता है। सुन्नी मुसलमानों का कलमा इस प्रकार है: "ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदूर रसूलुल्लाह," जिसका अर्थ है कि "अल्लाह के सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं, और मुहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।" दूसरी ओर, शिया मुसलमानों का कलमा "ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद रसूल अल्लाह, अली जिन वाली अल्लाह" होता है, जिसमें हज़रत अली का भी ज़िक्र होता है।
कुरान और उसकी व्याख्या
कुरान दोनों समूहों के लिए एक ही है, लेकिन उसका अनुवाद और व्याख्या में अंतर देखा जाता है। एक आयत का तात्पर्य शिया और सुन्नी दोनों में अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है, जिससे उनके धार्मिक दृष्टिकोण में अंतर आ जाता है।
नमाज और रमजान की प्रथाएं
नमाज के मामले में, सुन्नी मुसलमान पांचों नमाजों को अलग-अलग समय पर अदा करते हैं, जबकि शिया मुसलमान तीन वक्त में इन्हें मिलाकर पढ़ते हैं। इसके अलावा, सुन्नी मुसलमान रमजान के महीने में "तरावीह" नामक एक विशेष नमाज पढ़ते हैं, जबकि शिया मुसलमान इसे नहीं मानते, क्योंकि उनके अनुसार यह प्रथा बाद में शुरू हुई थी।
इमाम मेहंदी पर अलग मतभेद
इमाम मेहंदी को लेकर भी दोनों समूहों में मतभेद हैं। सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि इमाम मेहंदी क़यामत के करीब जन्म लेंगे और दुनिया में सुधार लाएंगे। वहीं, शिया मुसलमान यह मानते हैं कि इमाम मेहंदी पहले से ही दुनिया में हैं, लेकिन वे सही समय पर ही प्रकट होंगे।
अहम है मुहर्रम और मातम
मुहर्रम का दिन दोनों समूहों के लिए अहम है, लेकिन इसे मनाने का तरीका अलग है। शिया मुसलमान इस दिन कर्बला की जंग की याद में मातम करते हैं, जबकि सुन्नी मुसलमान इस दिन को याद तो करते हैं, लेकिन मातम नहीं करते।
तलाक और निकाह प्रक्रिया
तलाक के मामले में भी दोनों समूहों के बीच अंतर देखा जाता है। सुन्नी मुसलमानों के निकाह के वक्त गवाह होना जरूरी होता है, लेकिन शिया मुसलमान तलाक के वक्त भी गवाहों की आवश्यकता मानते हैं। हालांकि शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच कई धार्मिक और सांस्कृतिक अंतर हैं, लेकिन दोनों समूहों के बीच बेहतर संवाद और समझदारी से कई भ्रांतियों को मिटाया जा सकता है।