भगवान श्री राम का मंदिर में राम लला विराजमान हो चुके हैं। इसके लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई। मुगलों ने पांच सौ साल पहले भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर की जगह मस्जिद बनाई थी। ये मंदिर ऐसे ही नहीं बना। इसके लिए अदालतों में 134 साल की लड़ाई लड़ी। कई सरकारें गिरीं और कई सरकारें बनीं। राजीव गांधी, नरसिम्हा राव से लेकर नरेंद्र मोदी तक कई प्रधानमंत्रियों ने इसके लिए योगदान दिया। आइए जानते हैं कि इस विवाद की शुरुआत कब हुई थी।
1528: अयोध्या में राम जन्मभमूमि पर मस्जिद बनने से शुरु हुआ विवाद
ये बात है 1526 की, वो साल जब मुगल शासक बाबर भारत आया। दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में मस्जिद बनवाई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये मस्जिद उसी जगह बनी जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने इसे बाबरी मस्जिद का नाम दिया। मुगलिया सल्तनत का प्रसार जोरों पर था। लगभग तीन सौ साल मुगलों का राज रहा।
1858: 330 साल बाद हुई पहली एफआईआर
1858 में पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई। ये पहला टकराव था। अग्रेजों ने तारों की बाड़ लगाकर परिसर के अंदर और बाहर नमाज और पूजा की परमिशन दे दी।
1885 : भगवान के पक्के घर की बात कोर्ट पहुची
1885 में निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया। दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की। मगर अनुमति नहीं मिली
1949 : मूर्तियों का प्रकटीकरण
22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। हालांकि इसे लेकर दो तरह का दावे हैं।
1950: आजादी के बाद पहला मुकदमा
हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल कोर्ट फैजाबाद केस में दायर किया। विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की। 5 दिसंबर 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल कोर्ट में पूजा की मांग को लेकर मुकद्दमा दाखिल किया। 3 मार्च 1951 को दोनों मामलों में कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।
1959: निर्मोही अखाड़े ने मांगी पूजा-अर्चना की अनुमति
17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह लोगों ने मुकदमा दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका। साथ ही रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति देने की मांग रखी । 18 दिसंबर 1961 को उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने केस दायर कर कहा कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दिया जाए।अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं।
1982: हिंदू धर्मस्थलों की मुक्ति का अभियान
1982 में विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और मुक्ति के लिए अभियान चलाने का ऐलान किया। दो साल बाद 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया।
1986: परिसर का ताला खुला
1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया। फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर अपील खारिज हो गई।
1989: राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास
जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
1990: आडवाणी ने शुरु की रथ यात्रा, आंदोलन को दी धार
सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले। यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और धार दे दी। आडवाणी गिरफ्तार हुए।
1992: विवादित ढांचा गिरा, कल्याण सरकार बर्खास्त
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने राज्य की कल्याण सिंह सरकार सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को बर्खास्त कर दिया। अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में भाजपा के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
1993: दर्शन-पूजन की अनुमति मिल गई
8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए। करीब 25 दिन बाद 1 जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया।
2002: हाईकोर्ट पहुंचा मालिकाना हक का मामला
अप्रैल 2002 में उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू हुई। उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया। 22 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) होने की बात कही गई।
2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिया ऐतिहासिक फैसला
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
2017: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मध्यस्थता की पेशकश
21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है।
2019: सुप्रीम फैसला आया
6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की। 16 अक्तूबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई पूरी हुआ और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी। वहीं, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए।
2020: अयोध्या में मंदिर भूमि पूजन
5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ठीक छह महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए।
2024: भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हुई।23 जनवरी से मंदिर आम लोगों के लिए खुल गया है। अब जब राम लला गर्भग्रह में विराजमान हो चुके हैं तो हमारी यही कामना है कि देश में हर तरफ सौहार्द फैले और सब मिलजुलकर रहें।