save beauty by reducing non-biodegradable waste from the mountains : किसी भी टूरिस्ट प्लेस पर जाकर गंदगी और दूषित हवा-पानी की शिकायत तो हम सभी करते हैं, लेकिन इन खूबसूरत जगहों को दूषित करता कौन और इसे बदलने की कोशिश हममें से कितने लोग करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे शख़्स की कहानी बताने वाले हैं, जिन्होंने खुद तो इसे बदलने की कोशिश की ही, साथ ही हिमाचल प्रदेश के हजारों लोगों में जागरूकता लाकर उन्हें भी अपने मिशन ‘हीलिंग हिमालय’ से जोड़ दिया। हरियाणा के प्रदीप सांगवान, साल 2016 से पहाड़ों से नॉन बायोडिग्रेडेबल वेस्ट कम करके इसी खूबसूरती बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी संस्था के वेस्ट कलेक्शन सेंटर में आज हर दिन 5 टन कचरा जमा होता है। अब तक ये सभी मिलकर हिमाचल की वादियों से करीब 800 टन Non Biodegradable Waste जमा करके इसे रीसायकल होने के लिए भेज चुके हैं। उनकी इस मुहिम से आज हजारों लोग जुड़े हुए हैं। इसमें हिमाचल प्रदेश का स्थानीय प्रशासन और यहां घूमने आए टूरिस्ट भी शामिल हैं।
पत्थरों और चट्टानों के बीच फंस जाता है कचरा
उन्होंने इस काम की शुरुआत अकेले ही ट्रेकिंग साइट्स से कचरा उठाने से की थी। धीरे-धीरे उन्होंने लोगों को समझाया कि जिस कचरे को वे फालतू समझकर यूँ ही फेंक देते हैं, वह हवा से उड़कर पत्थरों और चट्टानों के बीच फंस जाता है और इसे हटाना काफी मुश्किल होता है। लोगों को समझाने के साथ उन्होंने हिमालय के पहाड़ों में क्लीनिंग ड्राइव करना शुरू किया। इस काम के सबसे बड़े चैलेंज के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि किसी काम को लगन के साथ लम्बे समय तक करते रहना ही उनके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल था। क्योंकि जब तक लोग आपको गंभीर होते नहीं देखेंगे, वे खुद भी गंभीर नहीं होंगे।
पहाड़ों से साफ हो रहा हर दिन 5 टन कचरा
उन्होंने छोटे-छोटे प्रयासों के ज़रिए काम जारी रखा। इस मुहिम से धीरे-धीरे ज़्यादा लोग जुड़ने लगे और कचरा भी ज्यादा जमा होने लगा। फिर उन्होंने इसे रखने के लिए स्टोर्स बनाए और समय के साथ उन्हें स्थानीय प्रसाशन का साथ भी मिला। प्रदीप ने लॉकडाउन के समय का सही उपयोग किया और शिमला, कुल्लू, किन्नौर, स्पीति में वेस्ट कलेक्शन सेंटर्स या Material Recovery Facilities शुरू कीं। इन सेंटर्स के ज़रिए वे हर रोज़ करीब 5 टन कचरा कलेक्ट कर, उसे स्टोर करते हैं और फिर उसे कंप्रेस कर रीसाइक्लिंग के लिए भेजते हैं। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि आज हिमाचल का 95% कचरा डंपिंग साइट की बजाय Recycling के लिए जा रहा है।