गुरदासपुर से एक बार फिर कविता विनोद खन्ना को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दी और उन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। जिस सीट से उनके पति विनोद खन्ना ने गुरदासपुर में चार बार लोकसभा चुनाव जीते आखिर वहां उनकी पत्नी कविता खन्ना को भाजपा टिकट क्यों नहीं दे रही ? क्यों भाजपा ने बाहरी के मुकाबले इस बार लोकल उम्मीदवार को पहल दी है।
पिछली बार सन्नी देओल को टिकट मिलने के बाद कविता ने कहा था कि ये पार्टी का फैसला है, लेकिन जिस तरह ये फैसला लिया गया। इससे उन्हें काफी तकलीफ हुई है। हालांकि उन्होंने तब कहा था कि वह पार्टी के फैसले के साथ हैं और नरेंद्र मोदी का समर्थन जारी रखेंगी।
अब एक नजर विनोद खन्ना के सियासी सफर पर डालते हैं । 1998 में विनोद खन्ना ने पहली बार गुरदासपुर से सांसद चुने गए। 1999 में, दूसरी बार उन्हें गुरदासपुर से जीत मिली। साल 2002 में उन्हें संस्कृति और पर्यटन मंत्री बनाया गया। सिर्फ 6 माह बाद ही उन्हें अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया। 2004 में वह तीसरी बार इस सीट से जीते।
हालांकि, 2009 में खन्ना चुनाव हार गए। 2014 में मोदी लहर के बीच विनोद खन्ना ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और गुरदासपुर सीट से उस वक्त के सांसद प्रताप सिंह बाजवा को 8 हजार वोट के अंतर से शिकस्त दी। खन्ना इस जीत से 16वीं लोकसभा में पहुंचे। विनोद खन्ना के निधन के बाद 2017 में कांग्रेसी उम्मीदवार सुनील जाखड़ चुनाव जीते थे।
कविता विनोद खन्ना बीजेपी की पहली पसंद क्यों नहीं बन पा रही। इसकी सबसे बड़ी वजह ग्राउंड वर्किंग है। भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस जो कि अपने कनेक्ट और ग्राउंड वर्क के लिए जान जाते हैं। उस पार्टी में कविता विनोद खन्ना कनेक्ट के स्तर पर पार्टी में बहुत कमजोर मानी जाती हैं।
लोकल लीडरशिप में कविता विनोद खन्ना का कनेक्ट न होने के कारण पार्टी स्तर पर ही उनका विरोध है। लोगों की बात करें तो बहुत छोटे वर्ग तक वह अपनी पहुंच बना सकी हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि वह सिर्फ टिकट की रेस में दौड़ती हैं।
सिर्फ टिकट मांगी, काम नहीं किया
सियासी माहिरों का कहना है कि पहली बार जब उपचुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिली तो उन्होंने पार्टी के सामने उन्होंने कोई विरोध दर्ज नहीं करवाया। दूसरी बार हलका विरोध किया और पार्टी के बीच बनी रहीं, मगर उस तरीके से गुरदासपुर में रहकर काम नहीं किया जैसे दिनेश बब्बू काम कर रहे थे।
गुरदासपुर के लोग पहले ही सन्नी देओल से बहुत नाराज हैं। ऐसे में पार्टी कविता विनोद खन्ना को टिकट देकर ये खतरा मोल नहीं ले सकती थी, क्योंकि वह भी पिछले कुछ महीने को छोड़ दें तो गुरदासपुर में बहुत कम रही हैं। ऐसे में एक और बाहरी उम्मीदवार देकर बीजेपी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी।
पंजाब में लोकल नेता के लिहाज से कविता विनोद खन्ना कभी अपना स्थान नहीं बना सकीं। इसमें उनकी भाषा आड़े आती है। गुरदासपुर के शहरी इलाके को छोड़ दें तो ग्रामीण लोगों को को हिंदी से ज्यादा पंजाबी बोलने वाले नेता पसंद आते हैं।
विनोद खन्ना और सनी देओल का अपना एक फैन बेस था तो वे जीतते रहे। मगर कविता विनोद खन्ना को लोग विनोद खन्ना वाली नजर से नहीं देखते। एक नेता के लिहाज से पार्टी में कविता विनोद खन्ना कभी भी अपने आप को स्थापित नहीं कर सकी है।
पठानकोट के कुछ बीजेपी वर्करों ने कहा कि वह राजनीति को लेकर सीरियस नहीं हैं। सिर्फ एमपी बनना चाहती हैं। पहले यहां बाहरी लोग जीत जाते थे। मगर अब लोग कहने लगे हैं कि लीडर अपना होना चाहिए। उस तक लोगों की एप्रोच होनी चाहिए। चुनाव में केवल चेहरा दिखाने से बात नहीं बनेगी। गुरदासपुर में पार्टी ने लोकल कैंडीडेट दिया है। दिनेश बब्बू को लोग अपना मानते हैं।
बब्बू और कविता के बीच बड़ी गैप
पार्टी स्तर पर देखें तो टिकट की रेस में दिनेश सिंह बब्बू और कविता खन्ना के बीच बहुत बड़ा गैप है। टिकट की रेस में बब्बू हरेक स्तर पर कविता विनोद खन्ना से बेहतर हैं। दिनेश बब्बू लोकल लीडर हैं उनका पार्टी के बीच अपना आधार है और दिल्ली तक एप्रोच भी है। लोकल लीडरों की भी पहली पसंद बब्बू ही थे। कविता विनोद खन्ना को लोग बाहरी ही मानते हैं। बीजेपी ने गुरदासपुर सीट से ग्राउंड वर्क करन वाले लीडर को आगे लाने का फैसला किया क्योंकि सनी देओल वाला पार्टी का तजुर्बा बेहद खराब रहा ।