ख़बरिस्तान नेटवर्क : प्रकृति की विविधता और ब्रह्मांड की अनंतता हमें आकर्षित करते हैं। लेकिन इन सबको देखने वाला द्रष्टा कौन है? और उसी में विश्राम पाने का अर्थ क्या है? समाधि को 'शिव सायुज्य' या शिव में पूर्ण रूप से विलीन हो जाना कहा गया है। संत कबीरदास ने इसे कोटि कल्प विश्राम कहा अर्थात एक क्षण में कल्पों का विश्राम। यह सबसे गहरा विश्राम है जो संभव है, जिसमें सतर्कता भी रहती है और जिससे पूर्ण मुक्ति की अवस्था प्राप्त होती है।
शिव तत्त्व सर्वव्यापी है। उसे बाहर नहीं, भीतर अनुभव किया जाता है बस उसके प्रति सजग होकर। जब हम समाधि की गहराई में उतरते हैं, तो यह तत्त्व अद्वैत रूप से प्रकट होता है, जैसे कोई लहर किसी तरह समुद्र की विशालता को पहचान ले। श्रावण मास में शिव की पूजा केवल नियमों और भजनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भीतर की यात्रा है, जहाँ चेतना साक्षी बनकर विश्राम में टिक जाती है।
वैसे तो विश्राम नींद से मिलता है, लेकिन बिना जागरूकता के। साधना का उद्देश्य है - मन को भीतर की ओर मोड़ना और उसे जागृत बनाए रखना। सामान्यतः जब मन भीतर जाता है, वह अवचेतन रूप से सो जाता है। लेकिन जब हम निद्रा-स्वप्न-जाग्रति की अवस्था से परे चले जाते हैं, तब समाधि घटित होती है। ध्यान करते समय लोग अक्सर नहीं जानते कि वे सोए थे या ध्यान में थे परंतु ध्यान के बाद जो शांति, आनंद और ताजगी मिलती है, वह अनुभव अद्वितीय होता है।
शिव और शक्ति का मिलन भी अत्यंत गूढ़ आध्यात्मिक संकेत है। शिव हैं चिदाकाश (अंतरिक्ष में व्यापक चेतना), और शक्ति हैं चिद्विलासा (उस चेतना की गतिशील अभिव्यक्ति)। शिव 'पुरुष' हैं - निराकार सत्ता; शक्ति 'प्रकृति' हैं,वही सत्ता, जब गुणों और रूपों में प्रकट होती है। शिव द्रव्य हैं, शक्ति गुण हैं। इस द्वैत में अद्वैत को पहचानना ही शिव तत्त्व का उत्सव है।
शिव वह चेतना हैं, जिनको सभी विरोधाभास स्वीकार हैं । वे सुंदरेश भी हैं और अघोर भी; भोलेनाथ भी हैं और रौद्र भी। वे शक्ति से विवाह करने आते हैं, उन शिवगणों के साथ जो अनगढ़, असामान्य और विचित्र होते हैं। यह दर्शाता है कि शिव तत्त्व केवल सौंदर्य को नहीं, बल्कि विचित्रता को भी अपनाता है। वह सबको जोड़ता है और समरसता लाता है।
दृश्य (शक्ति) अनेक हो सकते हैं अच्छे, बुरे, सुंदर या विचित्र; लेकिन द्रष्टा (शिव) एक ही है। जब द्रष्टा जागरूक हो जाता है, तो अनेकता में भी एकता का अनुभव होने लगता है। सौंदर्य दृश्य में नहीं, द्रष्टा की चेतना में निहित होता है।
संस्कृत में पर्व का अर्थ है उत्सव और शिव तत्त्व वही चेतना है जो सृष्टि में उत्सव लाती है। वह निराकार ब्रह्म भी साकार ब्रह्म के रूपों का आनंद मनाता है। शिव अस्तित्व की संपूर्णता के प्रतीक हैं जहाँ जीवन का नृत्य भी है और ध्यान की शांति भी, अंधकार भी है और प्रकाश भी, मासूमियत भी है और गहनता भी।
शिव तत्त्व सभी दुखों से मुक्ति दिलाता है। यह हमें यह अनुभव कराता है कि सब कुछ भिन्न होते हुए भी मूलतः एक ही चेतना से उपजा है और वही अनुभव भीतर की गहराई में साक्षात्कार के रूप में प्रकट होता है।