Muslim people wear burqa to protect the modesty and honor of women : इस्लाम धर्म में महिलाओं के लिए बुर्का पहनना एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है, जिसे हिजाब के रूप में भी जाना जाता है। हिजाब का अर्थ है ढकना या छिपाना और इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं की शालीनता और सम्मान की रक्षा करना है। मुस्लिम समुदाय में बुर्का पहनने की परंपरा सदियों पुरानी है और इसका संबंध धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से है। हालांकि, यह परंपरा हर मुस्लिम महिला पर लागू नहीं होती, क्योंकि इस्लामी दुनिया में विभिन्न देशों की संस्कृति और सामाजिक मान्यताएं अलग-अलग होती हैं। आइए जानते हैं कि बुर्का पहनने के पीछे क्या कारण हैं और इस परंपरा के पीछे क्या सबसे बड़ा सच छिपा है।
क्यों पहनते बुर्का
कुरान, जो इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक है, उसमें महिलाओं को शालीनता और सादगी के साथ रहने की शिक्षा दी गई है। आपने देखा होगा कि मुस्लिम महिलाएं अक्सर बुर्का पहनती हैं। कुरान शरीफ के अनुसार ईमानदार महिलाओं को चाहिए कि वे अपने शरीर को छिपाकर रखें और अपनी सुंदरता का प्रदर्शन न करें, सिवाय उनके पति या करीबी रिश्तेदारों के सामने। इस्लाम धर्म के लोगों का मानना है कि अल्लाह ने महिलाओं को सख्त निर्देश दिया है कि वे अपनी सुंदरता को अपने पति के अलावा किसी भी पराए पुरुष के सामने न दिखाएं।
सांस्कृतिक परंपरा
इस्लामिक देशों और समाजों में बुर्का पहनना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह वहां की सांस्कृतिक परंपरा का भी हिस्सा है। कई मुस्लिम देशों में, जहां इस्लामिक कानून और परंपराएं प्रमुख हैं, वहां बुर्का पहनने को सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और वहां की संस्कृति में महिलाओं के बुर्का पहनने को सामान्य रूप में देखा जाता है। सऊदी अरब, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, और कई अन्य देशों में बुर्का पहनना एक सामान्य सामाजिक नियम है, जो महिलाओं की सुरक्षा और शालीनता की गारंटी देता है।
व्यक्तिगत पसंद
बुर्का एक ऐसा पारंपरिक इस्लामी परिधान है जो पूरे शरीर को ढकने वाला होता है। महिलाओं के म्मान को बनाए रखने और समाज में अनजान व्यक्तियों के प्रति अपनी पहचान को सुरक्षित रखने के लिए इस्लाम में पर्दा प्रथा का यह नियम बनाया गया है। इसका उद्देश्य महिलाओं की इज्जत और गरिमा की रक्षा करना है। केवल महिला की आंखें, हाथ और पैर ही इस परिधान में दिखाई देते हैं। कुरान के निर्देशानुसार महिलाओं को यह परिधान एक विशेष सुरक्षा और निजता प्रदान करता है। उनके अनुसार बुर्का पहनने का निर्णय पूरी तरह से उनका व्यक्तिगत है और इसे किसी भी सामाजिक या राजनीतिक दवाब के कारण नहीं अपनाया गया है।
बुर्का पर विवाद
बुर्का पहनने को लेकर विभिन्न समाजों में मतभेद भी हैं। कुछ देशों में इसे महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के रूप में देखा जाता है। ट्यूनीशिया , ऑस्ट्रिया , डेनमार्क , फ्रांस , बेल्जियम , ताजिकिस्तान , बुल्गारिया , कैमरून , चाड और कुछ यूरोपीय देशों में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि बुर्का पहनने से महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके व्यक्तिगत अधिकारों पर सवाल उठता है। वहीं, दूसरी ओर, कई महिलाएं इस प्रतिबंध का विरोध करती हैं और कहती हैं कि बुर्का पहनना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है।