Employment opportunities will increase by making cities IT hubs : भारत को सालाना 6.5 फीसदी की विकास दर बनाए रखने के लिए वित्त वर्ष 2029-30 तक हर साल लगभग एक करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी। गोल्डमैन सैश की रिपोर्ट के अनुसार, दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में आईटी हब और छोटे शहरों में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर स्थापित करने से बड़े शहरों पर दबाव कम होगा। इससे कम सेवा वाले क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
रोजगार सृजन में पीएलआई योजनाओं का प्रभाव
रिपोर्ट के अनुसार, राजकोषीय प्रोत्साहनों को श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों जैसे कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण और फर्नीचर की ओर स्थानांतरित करने की जरूरत है। यह निम्न से मध्यम कौशल वाले श्रमिकों के लिए रोजगार सृजन में मदद कर सकता है।
श्रम प्रधान क्षेत्रों में ज्यादा बदलाव की जरूरत
सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं ने मुख्य रूप से पूंजी प्रधान उद्योगों को लाभान्वित किया है। इसके साथ ही गोल्डमैन सैश ने कपड़ा, जूते, खिलौने और चमड़े के सामान सहित अधिक श्रम प्रधान क्षेत्रों में ज्यादा बदलाव की जरूरत बताई है।
20 वर्षों में 19.6 करोड़ नौकरियों का सृजन
इससे भारत के विनिर्माण क्षेत्र को व्यापक रोजगार लक्ष्यों के साथ जोड़ा जा सकता है, क्योंकि लगभग 67 प्रतिशत विनिर्माण नौकरियां श्रम प्रधान क्षेत्रों में रहती हैं। पिछले दो दशकों में भारत ने लगभग 19.6 करोड़ नौकरियां जोड़ीं हैं। इनमें से दो तिहाई पिछले 10 साल में जुड़ी हैं।
कुल रोजगार में लगभग 34 प्रतिशत योगदान
भारत में रोजगार के लिए निर्माण क्षेत्र प्राथमिक चालक बना हुआ है। कुल नौकरियों का लगभग 13 प्रतिशत योगदान इसका है। रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचे में निवेश से न केवल नौकरियां पैदा हुई हैं, बल्कि निम्न से मध्यम परिवारों में आय का स्तर भी बढ़ा है। कुल रोजगार में लगभग 34 प्रतिशत योगदान सेवा क्षेत्र देता है। हाल के समय में इसका विस्तार तेजी से हुआ है।