रूस में चुनाव ख़त्म हो चुके हैं और इन चुनावों के दौरान व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर रूस के राष्ट्रपति बन गए हैं। रूस और चीन की चुनावी प्रक्रिया को तानाशाही का नाम दिया गया है। रूस के राष्ट्रपति चुनाव में रिजर्वर के तौर पर गए राजेश बाघा का कहना है कि वर्तमान में कहा जाता है कि ये दोनों देश तानाशाह हैं और चुनाव के नाम पर केवल औपचारिकता होती है लेकिन मेरे विचार से ऐसा नहीं है। मैं पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी से कह सकता हूँ कि रूस भी एक लोकतंत्र है, और उसकी चुनावी प्रक्रिया भी बहुत पारदर्शी है।
रूस में रैलियां निकालने की परंपरा नहीं
जनता के साथ कोई धक्का-मुक्की नहीं है और वोट के नाम पर कोई रैलियां निकालने या मुफ्त में सामान बांटने की कोई परंपरा नहीं है। आप सोच रहे होंगे कि ये आदमी रूस का इतना समर्थन क्यों कर रहा है तो मैं आपको बता देना चाहता हूं कि ये सब मैं इसलिए जोर देकर कह रहा हूं क्योंकि मैं इस बार रूस की चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं।
78 देशों से 200 प्रतिनिधि चुनाव देखने आए
उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भारत ही नहीं दुनिया के 78 देशों से 200 से अधिक प्रतिनिधि आ थे, जिनमें पूर्व न्यायाधीश, वर्तमान सांसद भी शामिल थे। फिर मुझे बताया गया कि मुझे एस.सी आयोग के पूर्व अध्यक्ष होने के नाते यह सम्मान मिला है, क्योंकि उस समय मेरे काम के कारण एक मित्र ने मेरा नाम भेजा था।
अब चुनाव स्टाफ के साथ मीटिंग होनी थी, तब हम 2 भारत से थे लेकिन बाकी एशियाई देशों के प्रतिनिधि भी आ गए थे और हमें एशियाई देशों का एक समूह बना दिया गया और यह गर्व की बात थी किमुझे था इसका अध्यक्ष भी बनाया गया। हम मतदान कर्मियों के साथ बैठक के लिए पहुंचे।
रूस में मोबाइल से भी होती है वोटिंग
जब मैंने चुनाव प्रक्रिया को समझा तो पता चला कि रूस में तीन तरह से वोटिंग होती है। पहला ई.वी.एम. से, दूसरा बैलेट पेपर से और तीसरा मोबाइल फोन से। मोबाइल से वोट करने के लिए तीन दिन पहले लिखित आवेदन देना होता है। जिसके बाद मतदाता को मंजूरी मिल जाती है और वह मोबाइल से वोट डाल सकता है। रूस में वोटिंग 3 दिनों तक चलती है और इन तीन दिनों के दौरान मतदाता जब चाहे जाकर अपना वोट डाल सकता है। इससे तो यही लगता है कि हमारा भारतीय लोकतंत्र सचमुच महान है।
बेहद शांतमयी ढंग से हुए चुनाव
उनके पूरे सिस्टम में काफी पारदर्शिता थी, कोई धक्का-मुक्की नहीं, कोई चिल्लाहट नहीं, कोई पोस्टर नहीं, कोई बैनर नहीं, हर उम्मीदवार टीवी-मीडिया टूल्स के जरिए वोटरों तक अपनी बात पहुंचा रहा था और चुनाव अमन-अमन के साथ संपन्न हो गया। इस दौरान मुझे कई रूसी मीडिया संस्थानों में जाकर अपनी बात कहने का भी अवसर मिला।
रूसी पत्रकारों ने भारत के चुनाव के बारे में जाना
एक पत्रकार ने मुझसे पूछा कि क्या भारत और रूस में चुनाव एक जैसे होते हैं तो मेरा जवाब था नहीं, बिल्कुल नहीं, क्योंकि भारत में चुनाव एक त्योहार की तरह होते हैं। जैसे शादी में दादा-दादी सिथनी देते हैं, वैसे ही चुनाव में नेता भी एक-दूसरे को सिथनी की तरह भला-बुरा कहते हैं। जब तक ऑटो पर अनाउंसमेंट नहीं होता, हमारे आस-पास के गांवों में पोस्टर नहीं लगते, हमें संतुष्टि नहीं होती।