खबरिस्तान नेटवर्क: भारतीय खिलाड़ी कहीं भी जायें उनकी चर्चा हमेशा ही होती है। फिर चाहे वे किसी भी खेल के खिलाड़ी हो। दरअसल अमेरिका में झारखंड की कुछ लड़कियां हॉकी खेलने गयी हैं, जहाँ वे अपने खेल के साथ साथ अपनी झारखंडी संस्कृति को भी बढ़ावा दे रही हैं। आईये उन लड़कियों के बारे में जानते हैं।
अमेरिका में खेल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम में हुआ चयन
बता दें कि झारखंड के खूंटी जिले की पुण्डी सरू और जूही कुमारी, सिमडेगा जिले की हेनरिटा टोप्पो और पूर्णिमा नेती और गुमला जिले की प्रियंका कुमारी का चयन अमेरिका के मिडिल बरी कॉलेज में 24 जून से 13 जुलाई तक आयोजित होने वाले खेल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के लिए हुआ है।
अपनी संकृति का प्रचार प्रसार
इनदिनों ये लड़कियां अमेरिका में खेल खेलने के लिए गयी हुई हैं। इसी दौरान ये लड़कियां खेल के साथ-साथ अपनी झारखंडी संस्कृति के बारे में अमेरिका की लड़कियों को इसका परिचय दे रही हैं। इतना ही नहीं झारखंड की इन युवतियों की काफी प्रशंसा हो रही है।
ये लड़कियां मिट्टी के बने घरों में रहती है
बताया जा रहा है कि ये लड़कियां काफी गरीब परिवार से आती हैं। लेकिन अब उनके इस प्रदर्शन से उम्मीद की जा रही है कि शायद अब उनके परिवार की गरीबी दूर हो पायेगी। बता दें कि घोर अभाव के बाद इस मुकाम पर पहुंची बच्चियों की हर कोई तारीफ कर रहा है।
जूनून ऐसा कि नई टीम बना डाली
खूंटी जिले की पुण्डी सरू और जूही कुमारी को खूंटी की हरियाली एस्ट्रॉटफ स्टेडियम में खेलने नहीं दिया जाता था। बावजूद इसके दोनों ने अपनी प्रैक्टिस नहीं छोड़ी और निकाली गई सभी हॉकी प्लेयर बच्चियों के साथ मिलकर अपनी एक अलग टीम बनाई। सभी लड़कियां बिरसा कॉलेज की ग्राउंड में हॉकी प्रैक्टिस के लिए जाती थी।
बड़ी उम्र होने पर खेलने नहीं दिया
इन दोनों लड़कियों के मुताबिक दोनों को एस्ट्रॉटफ मैदान में खेलने नहीं दिया जाता था, क्योंकि उनकी उम्र अधिक हो गयी थी। लेकिन उन दोनों में ऐसा पैशन था कि उनके टैलेंट को अमेरिका ने पहचाना। इतना ही नहीं उन्हें अब ट्रेनिंग भी दी जाएगी। दोनों के परिवार में इस बात काफी खुशी है।
पिता की मौत के बाद करनी पड़ी खेतों में मजदूरी
पुंडी के पिता एतवा सरू की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी जिसके बाद घर चलाना मुश्किल हो गया था। वहीँ दूसरी तरफ उसकी बड़ी बहन मंगुरी ने मैट्रिक में कम नंबर आने के कारण सुसाइड कर लिया था। इतना कुछ होने के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी उसके सिर आ गई। ऐसे में उसे अपनी हॉकी प्रैक्टिस कम करनी पड़ी क्योंकि वे खेतों में काम करने के लिए जाती थी जिससे उसके परिवार का खर्चा निकलता था।
जल्दी नौकरी पाने के चक्कर में खेलना शुरू किया हॉकी
पहले दोनों बहनें (पुंडी और मंगुरी) साथ-साथ हॉकी खेला करती थीं। पुंडी सरु पहले फुटबॉल खेलती थी। फिर उन्हें लगा कि हॉकी खेलने से उन्हें जल्दी नौकरी मिल जाएगी। ताकि वो परिवार का खर्चा उठा सके। इतना ही नहीं अमेरिका जाने से पहले वे कभी भी प्लेन में नहीं बैठी थी। इतना ही नहीं वे कभी कार में भी नहीं बैठी, दो साल पहले उन्होंने पहली बार ट्रेन में सफ़र किया था। बता दें कि पुंडी के गांव में कोई भी प्रेक्टिस के लिए ग्राउंड नहीं था। इसलिए वे 8 किलोमीटर दूर साइकिल चला कर जाती थी। पुंडी ने जब तीन साल पहले हॉकी खेलना शुरू किया टी उसके पास खेलने के लिए हॉकी स्टिक उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में उसने घर में रखे अनाज को बेचा और छात्रवृत्ति के पैसों को मिलाकरहॉकी स्टिक खरीदी थी।
प्रियंका ने बांस की छड़ी से बनाई हॉकी
गुमला जिला की प्रियंका कुमारी भी काफी संघर्ष के बाद इस मुकाम पर पहुंची हैं। प्रियंका के पिता लकवे की बीमारी से पीड़ित हैं। जिस कारण उनकी मां को ही परिवार का खर्च चलाने के लिए काम करना पड़ता है। वहीँ प्रियंका के खेल के प्रति जुनून के कारण उसने बांस की छड़ी से ही हॉकी बनाई। जिसकी मदद से उसने सीखना शुरू किया। खेल के प्रति उसके समर्पण को देखते हुए प्रशिक्षण के लिए उनका चयन इस कार्यक्रम में हुआ है।
मां ने मजदूरी कर बेटी को बढ़ाया आगे
हरनिता टोप्पो का भी चयन इस कार्यक्रम के लिए हुआ है। हरनिता सिमडेगा की रहने वाली हैं। हरनिता की मां मजदूरी करती हैं। बेटी को हॉकी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए वह काफी मेहनत की है।
परेशानियों को छोड़ बढ़ी आगे
वहीं सिमडेगा की ही रहने वाली पूर्णिमा ने भी कई आर्थिक परेशानियों को पीछे छोड़ते हुए आज बेहतर प्रदर्शन कर रही है और भारतीय दल के साथ इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका जा रही हैं।