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इस झील पर सालभर गिरती है आसमान से बिजली वैज्ञानिक भी हैं देखकर स्तंब्ध

इस झील पर सालभर गिरती है आसमान से बिजली, वैज्ञानिक भी हैं देखकर स्तंब्ध

मैराकाइबो झील जो 35 मिलियन साल पुरानी है. सन 2016 मे, अमेरिकन मेटेरोलॉजिकल सोसायटी ने एक स्टडी की। पाया गया कि मैराकाइबो झील में एक साल में 297 दिनों तक बिजली चमकती है।

इस बार भारत में होगी मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता 130 देशों की सुंदरियां होंगी शामिल

इस बार भारत में होगी 'मिस वर्ल्ड' प्रतियोगिता, 130 देशों की सुंदरियां होंगी शामिल

नवंबर-दिसंबर 2023 में ग्रैंड फिनाले से एक महीने पहले प्रतियोगियों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए कई राउंड होंगे। 130 से अधिक देशों के प्रतियोगी अपनी अनूठी प्रतिभा का प्रदर्शन करने भारत आएंगे।


वैज्ञानिकों ने तैयार कर लिया है सांस लेने वाला रोबोट, इंसानों की तरह मेहनत करके बहायेगा पसीना!

वैज्ञानिकों ने तैयार कर लिया है सांस लेने वाला रोबोट, इंसानों की तरह मेहनत करके बहायेगा पसीना!

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : 'रोबोट' जब हम यह शब्द बोलते हैं तो आपके दिमाग में क्या आता है? एक मशीन... एक ऐसी मशीन, जिसे इंसानों का काम आसान करने के लिए बनाया गया हो? कुछ सालों तक तो रोबोट एक मशीन ही हुआ करते थे, लेकिन अब इन्हें इंसान बनाया जा रहा है. अभी तक रोबोट को आपके हद से हद क्या करते हुए सुना होगा? किसी रेस्तरां में खाना सर्व करते हुए? आपको कैसा लगेगा, अगर हम आपसे कहें कि अब रोबोट को इतना एडवांस बना दिया गया है कि अब वह इंसानों की तरह सांस ले रहे हैं और पसीने भी छोड़ रहे हैं. नहीं, हम मजाक नहीं कर रहे हैं. आप खबर में डिटेल जान सकते हैं। पहला सांस लेने वाला रोबोट जी हां, आपने सही पढ़ा. अब सांस लेने वाला रोबोट बन चुका है. यह एक ऐसा रोबोट है, जो पसीना भी छोड़ता है. इसे बनाने वाली कंपनी ने, इसे स्वेटी रोबोट नाम दिया है. इस रोबोट को कई रोबोट की सहायता से बनाया गया है. इस थर्मल रोबोट में ऐसे फीचर जोड़े गाएं हैं, जो इसका मुकाबला सीधे इंसान से करवा रहे हैं. इस रोबोट को पसीना भी आता है और ठंड भी लगती है. भला किस मशीन के साथ ऐसा होता है? हैरानी तो इस बात से होती है कि रोबोट सांस ले सकता है। किसने बनाया यह रोबोट? इंसानों की बॉडी के ऊपर क्या होता है? खाल... इस रोबोट में भी स्किन की 35 लेयर बनाई गई हैं. इसी वजह से इसे इंसानों की तरह पसीना आता है. इसे यूएस फर्म Thermetrics ने बनाया है और फर्म ने ऐसे 10 रोबोट बनाए हैं। क्यों बनाया गया ऐसा रोबोट? इस रोबोट को यह समझाने के लिए तैयार किया गया है कि तड़कती गर्मी इंसानों के शरीर को कैसे प्रभावित कर सकती है. फर्म एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स को अपनी बात समझना चाहती है. इस रोबोट के प्रोजेक्ट को लीड कर रहे कोनराड रिकेक्जवेस्की ने बताया कि एंडी रोबोट को पसीना आएगा और ठंड भी लगेगी, जिसे कांपेगा. फर्म ने स्वेटी बेबी भी बनाए हैं. इन बेबी रोबोट से बच्चों की हेल्थ कंडीशन को समझने में मदद मिलेगी। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

https://webkhabristan.com/special-news/scientists-prepared-breathing-robot-it-will-work-hard-and-sweat-like-humans-29354
ऑस्ट्रेलिया के बोंडी बीच पर 4 मीटर तक ऊंची पॉटी का बना ढेर.. लोग छू-छूकर ले रहे सेल्फी!

ऑस्ट्रेलिया के बोंडी बीच पर 4 मीटर तक ऊंची पॉटी का बना ढेर.. लोग छू-छूकर ले रहे सेल्फी!

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : ऑस्ट्रेलिया में समुद्र में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा एक अनोखा तरीका अपनाया गया है। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में समुद्र में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है, जिसपर लगाम लगाने के लिए वहां के बोंडी बीच पर लगभग 4 मीटर तक ऊंची पॉटी की आकृति खड़ी की गई है। इसे वेस्ट आइटम्स से तैयार किया गया है और इस आक्रति को इंसान की पॉटी का रूप दिया गया है। जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आ रहे है और लोग इसे छू कर सेल्फी लेते दिखाई दिए। मछली प्रजाति पर आया बड़ा संकट बता दें कि ऑस्ट्रेलिया में समुद्र में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए वहां कई तरह के जागरूक कार्यक्रम बनाए गए जहां लोगों को प्रदूषण के प्रति अवेयरनेस दी गई। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण मंत्री ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि समुद्र में लोगों द्वारा फेंके जा रहे कचरे और प्लास्टिक की वजह से समुद्री जीवन प्रभावित हो रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो साल 2050 तक मछलियां पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी। समुद्री जीवों की तकलीफें बढ़ रही है लेकिन इसके बावजूद लोगों में किसी तरह का बदलाव नहीं आया और वो अब भी समुद्र में बड़े पैमाने पर कचरा फेंक रहे हैं। वहीं अब बोंडी बीच पर पॉटी की आकृति खड़ी करने के पीछ मकसद यह है कि ताकि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि उनकी कचरा समुद्र में फेंकने की आदत की वजह से समुद्री जीवों की तकलीफें बढ़ रही हैं और उनकी जिंदगी खतरे में पड़ रही है। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

https://webkhabristan.com/special-news/pile-of-potty-up-to-4-meters-high-on-bondi-beach-in-australia-people-take-selfi-29304
धरती से गायब होने वाली हैं ये 7 जनजातियां, किसी में बचे हैं 200 तो किसी में सिर्फ 3 लोग! जानें वजह

धरती से गायब होने वाली हैं ये 7 जनजातियां, किसी में बचे हैं 200 तो किसी में सिर्फ 3 लोग! जानें वजह

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : जब से धरती पर इंसानों का कब्जा हुआ, तब से इंसानों ने कई ऐसे आविष्कार किए जिनसे उन्होंने अपनी जिंदगी आसान भी कर ली और खतरे में भी डाल ली. इंसानों ने प्रदूषण का स्तर बढ़ा दिया, जंगलों को काटने लगे और इस चक्कर में कई जानवर विलुप्त हो गए पर विलुप्त होने की इस श्रेणी में सिर्फ जानवर ही नहीं, इंसान भी शामिल हैं. जो इंसान जंगलों में रह गए वो प्रकृति के ज्यादा करीब थे पर शहरी और आधुनिक लोगों ने इन जनजातियों के लिए जिंदगी को मुश्किल बना दिया. आज भी धरती पर कई ऐसी जनजातियां हैं जो खत्म होने वाली हैं. इनकी आबादी बेहद कम बची है. आज हम ऐसी ही 7 जनजातियों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं. ये रिपोर्ट वॉन्डरलस्ट वेबसाइट की साल 2016 की एक रिपोर्ट के आधार पर बनाई गई है। इस जनजाति में सिर्फ 4 लोग बचे हैं आकुंत्सु-इस लिस्ट में सबसे पहला नाम है आकुंत्सु (Akuntsu Brazil) का. वॉन्डरलस्ट के अनुसार उत्तर पश्चिमी ब्रांजील में रहने वाली इस जनजाति में सिर्फ 4 लोग बचे हैं वहीं सर्वाइवल इंटरनेशनल नाम की वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब इस जनजाति के सिर्फ 3 ही लोग बाकी हैं. 1980 तक इनकी संख्या काफी ज्यादा थी पर 1990 के दशक में जब लकड़ी के व्यापारी और पशुपालकों ने विकास के नाम पर जंगलों को काटना शुरू किया तो उन्होंने इस जनजाति के लोगों की हत्या भी शुरू कर दी. ये विलुप्त होने की कगार पर हैं. ताजा सर्वेषण क्या कहते हैं, ये तो नहीं पता पर इन्हें बचाना आवश्यक है। जरावा में करीब 400 लोग रह गए हैं जरावा- भारत के अंडमान द्वीप पर रहने वाली जरावा (Jarawa, Andaman Islands) जनजाति की भी संख्या कभी काफी ज्यादा हुआ करती थी पर अब इसमें सिर्फ 400 के करीब लोग रह गए हैं. 1998 तक ये आधुनिक समाज से बिल्कुल अलग रहा करते थे और शिकार, मछली पकड़कर अपना पेट पालते थे. पर्यटकों और शिकारियों की वजह से इन्हें काफी नुकसान पहुंचा है। इनकी जनसंख्या 200 तक पहुंच गई लिवोनियन्स- लैटविया में रहने वाली ये मछुआरों की जनजाति (Livonians, Latvia) 4000 सालों से यहां बसी हुई है. इनके गांवों को तबाह किया गया और सालों तक इनके साथ युद्ध चले जिसकी वजह से इनकी जनसंख्या 200 तक पहुंच गई है। 1988 में दुनिया से संपर्क में आई थी नुकाक- कोलंबिया की नुकाक (Nukak, Colombia) जनजाति में करीब 400 लोग बचे हैं. कोकोआ उगाने वाले, कोकेन बेचने वाले व्यपारियों की वजह से इनकी जनसंख्या और इनकी बस्तियों को तबाह कर दिया गया. 1988 में ये जनजाति पहली बार बाहरी दुनिया से संपर्क में आई थी और तब से अब तक 50 फीसदी लोगों की मौत हो चुकी है। विलुप्त होने की कगार पर जनजाति एल मोलो- केन्या (El Molo tribe Kenya) की एल मोलो जनजाति भी विलुप्त होने की कगार पर है. रिपोर्ट के अनुसार इस जनजाति में 800 के करीब लोग रह गए हैं. कोई नहीं जानता कि ये कहां से आए थे पर ये केन्या में लेक टुर्काना के पास रहते हैं। साओच जनजाति की आबादी 110 साओच-कंबोडिया की साओच जनजाति (S'aoch tribe, Cambodia) की आबादी 110 रह गई है. इस जनजाति के लोगों को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया जाता था क्योंकि वो अपनी भाषा में बात करते थे। सिर्फ 300 लोग बाकी रह गए हैं बाटक- फिलिपीन्स की बाटक (Batak, Philippines) जनजाति भी विलुप्त हो सकती है. इसमें सिर्फ 300 लोग बाकी रह गए हैं. ये किसानी और शिकार कर अपना पेट भरते थे पर इनके खिलाफ होने वाली हिंसा और खेती की शिफ्टिंग कल्टिवेशन टेक्निक की वजह से इन्हें कई जगहों पर बैन भी कर दिया गया है। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

https://webkhabristan.com/special-news/7-tribes-going-to-disappear-from-earth-some-have-200-left-some-only-3-people-29235
7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : यूरोपीय देशों में तो हीटवेव ने हाहाकार मचा रखा है। ऐसे में कई जलवायु सम्मेलनों में भी ग्लोबल वार्मिंग की चिंता जताई गई है। लेकिन कोई असर नहीं पड़ा है। इसी बीच एक नई जांच रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर यह है कि उत्तरी गोलार्ध में स्थित आर्कटिक महासागर में 2030 से हर गर्मियों में जो बर्फ अभी ग्लेशियर के रूप में तैरती दिखाई देती है, वह भी गायब हो जाएगी। तैरती बर्फ पिघलने से नहीं रोक सकते नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेरिस में हुई जलवायु संधि के तहत अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर भी रोका जाए तब भी आर्कटिक महासागर पर तैरती बर्फ को पिघलने से नहीं रोक सकते। दक्षिण कोरिया के एक शोधकर्ता और लेखक सेउंग की मिन ने बताया कि पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाकर यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा देगा। बर्फ के टुकड़े के पिघलने के कारण इससे ग्रीनहाउस गैस और समुद्री स्तर में बढ़ावा होगा। आर्कटिक को कब कहते हैं बर्फ मुक्त दरअसल, यदि आर्कटिक महासागर एक मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम बर्फ से घिरा है या पूरे महासागर में बर्फ सात प्रतिशत से कम है तो वैज्ञानिक इसे बर्फ मुक्त कहते हैं। फरवरी में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है। 1991-2020 के औसत से यह स्थिति लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

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नसीब वालों को मिलती है

नसीब वालों को मिलती है 'दो जून की रोटी', आंकड़ों से समझिए कहावत का मतलब?

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : आज दो जून है इसलिए डायनिंग टेबल से लेकर सोशल मीडिया की वाल तक 'दो जून की रोटी' पर भरपूर ज्ञान परोसा जा रहा है. कोई इस पर जोक बनाते हुए पूछ रहा है- आपने 2 जून की रोटी खाई क्या? तो कोई 'दो जून की रोटी बहुत मुश्किल से मिलती है' या 'दो जून की रोटी नसीबवालों को मिलती है' जैसा कैप्शन लिखकर अपने ज्ञान की गंगा बहा रहा है. ऐसे ही एक यूजर ने लिखा- प्लीज़ आज रोटी जरूर खाएं क्‍योंकि 2 जून की रोटी बड़ी मुश्किल से मिलती है. ऐसी भूमिकाओं के बीच आपको बताते चलें कि इस कहावत का 'जून' के महीने से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं है। दरअसल, 2 जून की रोटी एक पुरानी भारतीय कहावत है और इसका मतलब 2 टाइम यानी दोपहर का भोजन (लंच) और डिनर (रात के खाने) से लगाया जाता है. आंकड़ों की बाजीगरी में गरीबी कभी कम हो जाती है, तो कभी बढ़ जाती है. गरीबी की परिभाषा और गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों का आंकड़ा भी भारत में हमेशा विवादों में रहा है। 1971 के जनगणना के मुताबिक तब भारत की 54 करोड़ आबादी थी, जिसमें से 57% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे. ग्रामीण से ज्यादा शहरी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रही थी। 2 जून की रोटी का मतलब अवधी भाषा में जून का मतलब वक्त अर्थात समय से होता है. इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े हों या पूर्वज इस कहावत का इस्तेमाल दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर करते थे. इस कहावत के जरिए वो अपने बच्चों को थोड़े में ही संतुष्ट रहने की सीख देते थे. उनका मानना था कि मेहनत करके गरीबी में अगर दोनों टाइम का खाना भी मिल जाये वही सम्मान से जीने के लिए काफी होता है। आंकड़ों से समझिए इस बारें गरीबी और भूख एक दूसरे के पूरक हैं. भूख लगेगी तो रोटी चाहिए होगी. रोटी कमाना आसान नहीं है. रोटी बड़ी मे‍हनत से कमाई जाती है. इसलिए 'दो जून की रोटी' की चिंता और चर्चा कभी खत्म नहीं होती. देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था. इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक 52 साल में 12 प्रधानमंत्री बदल गए, देश का गरीब मानो सियासी मोहरा बनकर रह गया. नारों से नहीं मिलती रोटी सरकारें दशकों से 'गरीबी हटाओ' और 'कोई भूखा नहीं सोएगा' जैसे नारे देकर कई योजनाएं लागू कर चुकी हैं इसके बावजदू लाखों लोगों को आज भी दो जून की रोटी नसीब नहीं है. अंत्योदय योजना से लेकर मनरेगा और वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही फ्री राशन की योजनाओं के बावजूद दो दून की रोटी की समस्या कब खत्म होगी, इसका जवाब अबतक नहीं मिल पाया है। ग्लोबल हंगर इडेक्स रिपोर्ट 2022 के ग्लोबल हंगर इडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी के मामलों में भारत दुनिया के 121 देशों में 107वें नंबर पर है. हालांकि इस रिपोर्ट के आंकड़ों को सरकार ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है. इससे पहले 2011 में कांग्रेस की अगुवाई वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने भी हंगर इंडेक्स के दावों को खारिज कर दिया था. दशकों से देश में चुनावी मुद्दा बन चुकी गरीबी हर साल बजट आने के बाद कुछ समय तक सुर्खियों में जरूर रहती है। यूएनडीपी की जारी रिपोर्ट साल 2020 में संयुक्त राष्ट्र संघ की जारी यूएनडीपी की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत की कुल 135 करोड़ आबादी में से 22 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और दुनिया में गरीबों की संख्या मामले में भारत का स्थान सबसे टॉप पर है. हालांकि, इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बीते 20 साल में 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं. 'दो जून की रोटी' वाली कहावत कब बनी इसका तो कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन जबतक दुनिया रहेगी ये कहावत तबतक प्रासंगिक बनी रहेगी। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

https://webkhabristan.com/special-news/lucky-people-get-two-june-roti-understand-the-meaning-of-proverb-from-the-figure-28860
सबसे खतरनाक जेल, जहां से निकल रही कैदियों की डेड बॉडी! जानें खौफनाक सच

सबसे खतरनाक जेल, जहां से निकल रही कैदियों की डेड बॉडी! जानें खौफनाक सच

वेेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : आपने एक से एक भयानक जेलों के बारे में सुना होगा. कहीं, कैदियों को मारकर उल्‍टा लटका दिया जाता है, तो कहीं कैदी ही एक दूसरे को मारकर खा जाते हैं. किसी जेल में कैदियों को घंटों पानी नहीं दिया जाता तो कहीं, मह‍िलाएं पुरुष कैदियों की पिटाई करती हैं. मगर आज हम आपको दुनिया के सबसे खतरनाक जेल के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां कुछ दिनों पहले ही 67,000 कैदी भेजे गए थे, लेकिन अब खौफनाक सच सामने आया है. जेल से अपराध‍ियों की डेड बॉडी निकल रही है। घुटनों के बल रखा था कैदियों को मध्‍य अमेरिकी देश अल सल्‍वाडोर के राष्ट्रपति नायब बुकेले ने गैंगस्टरों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है. बीते दिनों 67 हजार से ज्‍यादा अपराध‍ियों को गिरफ्तार किया गया. जेलें कम पड़ने लगीं तो सरकार ने एक विशेष जेल का निर्माण करवाया. उसी समय इसे सबसे क्रूर कारागार कहा गया. क्‍योंकि कैदियों को घुटनों के बल रखा था. इन कैदियों में से 153 की मौत उनके शरीर पर खास तरह के टैटू बनवाए गए थे. जब उन्‍हें ले जाया जा रहा था तो शरीर पर कपड़े तक नहीं थे. डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, अब खबर आ रही है कि इन कैदियों में से 153 की मौत हो गई. हाल ही में उनकी डेड बॉडी निकाली गई है. इतनी यातनाएं दीं कि मारे गए मानवाध‍िकार समूह क्रिस्‍टोसल ने यह रिपोर्ट पेश की है. कहा गया है कि जिन लोगों की मौत हुई, उनमें से किसी को भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है. जिन अपराधों में इन्‍हें गिरफ्तार किया गया, उसकी पूरी सुनवाई तक नहीं हुई. मरने वालों में चार मह‍िला कैदी और बाकी सब पुरुष कैदी थे. शरीर पर गंभीर चोटों के निशान जेल में इन्‍हें इतनी यातनाएं दी गईं कि इनकी मौत हो गई. इनके शरीर पर गंभीर चोटों के निशान मिले हैं. गलत अंगों पर प्रहार किए गए. आधे लोगों की मौत मारपीट करने से हुई जबकि कुछ लोगों की मौत कुपोषण से हुई. यानी यहां लोगों को पर्याप्‍त खाना तक नहीं दिया जाता. बिजली के झटके भी दिए गए हैं रिपोर्ट से खौफनाक सच सामने आया है. पता चला कि जेल के सुरक्षाकर्मी और अध‍िकारी इनके साथ बुरा सलूक करते थे. बीमार होने पर इलाज नहीं किया जाता. जान बूझकर दवा और खाना समय से नहीं दिया जाता. हालांकि, सरकार ने कैदियों की मौत की संख्‍या अब तक नहीं बताई है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कई लोगों को बिजली के झटके दिए गए। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

https://webkhabristan.com/special-news/most-dangerous-jail-dead-bodies-of-prisoners-are-coming-out-know-creepy-truth-28683
CBDT की नई शुरुआत, TDS-TCS का अब ऑनलाइन होगा निपटारा, टैक्सपेयर्स को मिलेगी राहत

CBDT की नई शुरुआत, TDS-TCS का अब ऑनलाइन होगा निपटारा, टैक्सपेयर्स को मिलेगी राहत

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने एक नई सुविधा शुरू की है। सीबीडीटी की तरफ से ई-अपील स्कीम लॉन्च कर दी गई है, जिसका ऐलान इस साल के बजट में किया गया था। नई सुविधा के तहत टीडीएस (TDS) और टीसीएस (TCS) या टैक्स कलेक्टेड एट सॉर्स से जुड़ी अपील ऑनलाइन की जा सकेगी। इनका निपटारा भी ऑनलाइन ही होगा। बता दें कि ई-अपील स्कीम के तहत जॉइंट कमिश्नर (अपील) के सामने ये शिकायतें पहुंचेंगी। फिर वे इन अपीलों को निपटाएंगे या उनका आवंटन और उन्हें ट्रांसफर भी कर सकेंगे। इस प्रोसेस से टीडीएस और टीसीएस से जुड़ी शिकायतों के निपटारे में तेजी आएगी। वीडियो के जरिए होगी सुनवाई जॉइंट कमिश्नर (अपील) के पास कारण बताओ नोटिस जारी करने और संबंधित कानूनों के तहत जुर्माना लगाने का भी अधिकार होगा। मगर फिजिकल मीटिंग न होने के चलते उन्हें समन जारी करने की अथॉरिटी नहीं होगी। दरअसल अपीलकर्ता पर्सनल सुनवाई की अपील वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए होगी। टैक्स अधिकारियों द्वारा जारी किए गए एसेसमेंट ऑर्डर के खिलाफ अपीलकर्ता अपने मामले के निपटारे के लिए कहीं से भी अप्लाई कर सकेंगे और सुनवाई में शामिल हो सकेंगे। टैक्सपेयर्स को मिलेगी राहत ई-अपील स्कीम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शामिल होगी। इस तकनीक का फायदा उठाते हुए स्कीम का मकसद अपील प्रोसेस में उलझे टैक्यपेयर्स को सुविधा देना और उनके लिए एक्सेसिबिलिटी को बढ़ाना है। इससे टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स ऑफिस नहीं जाना होगा। फाइनेंस बिल में बदलाव किया केंद्र सरकार ने पहले ही आयकर अधिनियम में नए जॉइंट कमिश्नर (अपील) को शामिल करने के लिए फाइनेंस बिल में संशोधन कर दिया है। सीबीडीटी इस उद्देश्य के लिए आयकर विभाग के जॉइंट कमिश्नर के पद पर लगभग 100 लोगों को तैनात करेगी।अपीलों के निष्पक्ष आवंटन या ट्रांसफर के लिए Director General of Income-tax (Systems) एक रेंडमाइज्ड प्रोसेस डेवलप करेंगे, जिसके जरिए जॉइंट कमिश्नर (अपील) को अपील असाइन की जाएगी। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

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UPI से भी आसान सिस्टम लाने वाला है RBI, बिना मोबाइल नेटवर्क के भेज सकेंगे पैसे, सबको नहीं मिलेगी सुविधा

UPI से भी आसान सिस्टम लाने वाला है RBI, बिना मोबाइल नेटवर्क के भेज सकेंगे पैसे, सबको नहीं मिलेगी सुविधा

वेब खबरिस्तान, नई दिल्ली : पैसे भेजने के अभी जो ऑप्शंस हैं, चाहे UPI हो, NEFT हो या फिर RTGS हो ये सब इंटरनेट और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की मदद से काम करते हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) एक लाइटवेट पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम पर काम कर रहा है. ये सिस्टम प्राकृतिक आपदा या फिर हिंसा ग्रस्त इलाकों में कम से कम संसाधन के साथ काम करेगा और यूजर्स को पैसे ट्रांसफर करने की सुविधा देगा. RBI ने फिलहाल ये साफ नहीं किया है कि ये सिस्टम लॉन्च कब तक किया जाएगा RBI का कहना है कि लाइटवेट पेमेंट सिस्टम इन तकनीकों पर निर्भर नहीं रहेगा यानी मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट नहीं होने पर भी इससिस्टम से पैसे भेजे जा सकेंगे. RBI की एनुअल रिपोर्ट में लाइटवेट सिस्टम का जिक्र RBI ने साल 2022-23 की अपनी एनुअल रिपोर्ट 30 मई को पब्लिश की. इसमें बैंक ने एक लाइटवेट और पोर्टेबल पेमेंट सिस्टम का जिक्र किया है. RBI ने लिखा है कि ये सिस्टम मिनिमल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के साथ काम करेगा और केवल ज़रूरत की स्थिति में ही इस सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा. यानी UPI और पेमेंट के दूसरे तरीकों की तरह लाइटवेट सिस्टम ओपन टू ऑल नहीं रहेगा। देश के पेमेंट और सेटलमेंट सिस्टम को रुकने नहीं देगा ये सिस्टम केवल उन्हीं स्थितियों में इस्तेमाल में लाया जाएगा जिन स्थितियों में पेमेंट के प्रचलित सिस्टम काम नहीं कर पाएंगे. RBI का कहना है कि ये सिस्टम किसी भी परिस्थिति में देश के पेमेंट और सेटलमेंट सिस्टम को रुकने नहीं देगा और इकॉनमी की लिक्विडिटी पाइपलाइन को बचाए रखेगा. इस सिस्टम के आने से जरूरी पेमेंट सेवाओं में रुकावट नहीं आएगी। फाइनेंशियल मार्केट के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भरोसा बढ़ाएगा इस सिस्टम का मकसद उन ट्रांजैक्शंस में मदद करना है जो अर्थव्यवस्था के स्टेबल रहने के लिए ज़रूरी हैं. केंद्रीय बैंक ने अपने स्टेटमेंट में लिखा, “ये पेमेंट सिस्टम में उसी तरह काम करेगा जैसे युद्ध की स्थिति में बंकर काम करता है. ये एक्स्ट्रीम कंडीशंस में भी डिजिटल पेमेंट और फाइनेंशियल मार्केट के इंफ्रास्ट्रक्चर पर लोगों का भरोसा बढ़ाएगा।” UPI से कैसे अलग होगा इसतरह का लाइटवेट सिस्टम? भारत में फिलहाल अलग-अलग पेमेंट ऑप्शंस मौजूद हैं. RBI का कहना है कि ये सभी बड़े ट्रांजैक्शन करने में सक्षम हैं. हालांकि, ये एक कॉम्प्लेक्स नेटवर्क और एडवांस्ड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर पर आधारित हैं. RBI का कहना है कि एक्स्ट्रीम कंडीशंस में इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रभावित होता है. उसके चलते पेमेंट के ये सिस्टम काम नहीं कर पाते हैं. इसलिए ये जरूरी है कि हम ऐसी सिचुएशन के लिए तैयार रहें। व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाईन करने के लिए लिंक पर क्लिक करें https://chat.whatsapp.com/LVthntNnesqI4isHuJwth3

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