सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी सोमवार को वोट के बदले नोट मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अगर कोई सांसद या विधायक सदन में नोट लेकर वोट देता है या भाषण देता है तो अब उस पर मुकदमा चलेगा। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने सोमवार को 25 साल पुराना फैसला पलट दिया है।
कोर्ट के पिछले फैसले को खारिज किया
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं। वहीं, कोर्ट के पिछले फैसले को खारिज किया जा रहा है। पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में पिछले 25 साल यानी 1998 में सदन में वोट के बदले नोट मामले में सांसदों को मुकदमे से छूट की बात कही थी।
अनुच्छेद 105 का कोर्ट ने किया जिक्र
बहुमत के फैसले में 5 जजों की पीठ ने तब पाया कि सांसदों को अनुच्छेद 105 (2) और 194(2) के तहत सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के बदले आपराधिक मुकदमे से छूट है। अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों और विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।
रिश्वतखोरी भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा
वहीं सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा,आज सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर कोई सांसद राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेता है, तो वे अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट देने के लिए पैसे लेना या प्रश्न पूछना भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगा।