Dr. Farooq has been providing free treatment to the poor for 10 years : सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) के एक बेहद ही गरीब परिवार में जन्मे डॉ. फारूक हुसैन, आज भले ही एक सफल डॉक्टर हैं और कई अवार्ड्स भी जीत चुके हैं। लेकिन गरीबी में बिताया अपना बचपन वह आज तक नहीं भूले और न ही वह अपने आप से किया हुआ बचपन का वादा भूले हैं। डॉ. फारूक हुसैन ने गरीब लोगों का इलाज करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और आज लोग उन्हें प्यार से 'बिना पैसे का डॉक्टर' कहकर बुलाते हैं। डॉ. फारूक जैसे लोगों की वजह से ही इस दुनिया में आज भी इंसानियत ज़िन्दा है।
बिना पैसे का डॉ. कहकर बुलाते है
सालों पहले अपने आस-पास की तकलीफें देखकर, यह फैसला कर लिया था कि उन्हें बड़े होकर जरूरतमंदों के लिए ही काम करना है। इसलिए आज, पिछले 10 सालों से वह सुन्दरबन इलाके में एक ऐसा अस्पताल चला रहे हैं, जिसमें गरीबों को हर तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं फ्री में दी जाती हैं। यही कारण है कि अब लोग उन्हें बिना पैसे का डॉक्टर कहकर ही बुलाते हैं।
लोगों की सेवा के लिए बने डॉक्टर
डॉ. फारूक ने शुरुआती शिक्षा अपने गांव से ली थी। बाद में उन्होंने कोलकाता मिशन स्कूल में एडमिशन लिया। मिशन स्कूल में पढ़ते हुए ही उन्होंने डॉक्टर बनने के सपना देखा और उन्हें बाद में उन्हें MBBS की पढ़ाई करने का मौका मिला। उन्होंने बांकुरा मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना शुरू किया।
गांव से जुड़ी हर समस्या पर काम
लेकिन नौकरी करते हुए उन्हें हमेशा अपने इलाके के लोगों की समस्या का ख्याल आता था। ऐसे में उन्होंने वापस जाकर, उन ज़रूरतमंद लोगों के लिए काम करने का सोचा। साल 2014 में उन्होंने नौकरी छोड़कर, अपने गांव के कुछ युवाओं की मदद से एक NGO शुरू किया।आज अपनी NGO ‘Naba- Diganta’ के ज़रिए, वह यहां गांव से जुड़ी हर तरह की समस्या पर काम कर रहे हैं।
मसीहा से कम नहीं समझते लोग
उन्होंने यहां एक स्कूल भी बनवाया है। साथ ही सुंदरबन क्षेत्र की महिलाओं और लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के लिए जागरूक के लिए उन्होंने फ्री सैनिटरी नैपकिन देना शुरू किया। इस काम के लिए उनका नाम 2021 में इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुआ। साथ ही डॉ. फारूक को कई बार राज्य स्तर पर भी सम्मानित किया जा चुका है। यहां के लोग आज उन्हें एक मसीहा से कम नहीं समझते और डॉ. फारूक इसे ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।