completed his studies with the help of others, is teaching at his own expense : सम्बलपुर ओडिशा के रहने वाले अबिनाश मिश्रा, जब स्कूल में थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों की मदद से पढ़ाई पूरी की। तभी से अबिनाश ने ठान लिया था कि वह भी जीवन में मौका मिलने पर दूसरे जरूरतमंद बच्चों को आगे पढ़ने में जरूर मदद करेंगे। शायद तब उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनकी इसी सोच की वजह से एक या दो नहीं सैकड़ों बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी भर जाएगी। चाटोशाली यानी एक ऐसी जगह जहां गांव के बच्चे इकठ्ठा होकर पढ़ाई करते हैं। अबिनाश ने ओडिशा की सालों पुरानी इस प्रथा को जिन्दा किया और संवार दिया सैकड़ों बच्चों का भविष्य।
नेक कार्य की हो चुकी है तारीफ
आज ओडिशा के सहायकुलिया, गैनपुरा, आमकुनी, होतापाल, बड़मल, भीमखोज सहित 17 गांवों के करीब 300 बच्चे के लिए सम्बलपुर के अबिनाश मिश्रा का किया हुआ एक छोटा सा प्रयास वरदान बन चुका है। उनका यह छोटा सा प्रयास आज एक मिशन बन चुका है। यहां एक नहीं बल्कि 17 गांवों में शिक्षा चाटोशाली के ज़रिए बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उनके इस नेक कार्य की तारीफ ओडिशा के राज्यपाल से लेकर आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अधिकारियों ने भी की है।
जागरूकता ही है सच्चा सम्मान
शिक्षा के प्रति बच्चों और उनके माता-पिता में आई जागरूकता ही उनका सच्चा सम्मान है। इसी साल मई तक वह संबलपुर वन प्रमंडल में रेंज कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रहे थे। वह एक कोऑर्डिनेटर के तौर पर, अपने फील्ड विज़िट के दौरान दूर-दराज के गांवों में भी खूब घूमा करते थे लेकिन इन गांवों में बच्चों की शिक्षा के प्रति लोगों की लापरवाही देखकर उन्हें काफी निराशा हुई।
लगभग हर गाँव में था बुरा हाल
लगभग हर गाँव में उन्होंने देखा कि गरीब परिवार के बच्चे पत्ते से बीड़ी बनाने का काम कर रहे थे। हालांकि, वे पास के सरकारी स्कूलों में नामांकित थे लेकिन कभी स्कूल नहीं जाते थे। उन्होंने देखा कि कुछ स्कूल बच्चों के घर से दूर होते थे तो कुछ घर की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए माता-पिता के साथ काम पर लग जाते थे। ऐसे में ये बच्चे शिक्षा से दूर हो गए थे।
शिक्षा फैला रही है चाटोशाली
इन बच्चों की मदद के लिए अविनाश ने सहजकुलिया गांव में जाकर खुद ही पढ़ाना शुरू किया। इसी गांव में उनकी मुलाकात एक ऐसी लड़की से हुई जो ग्रेजुएशन के बाद आगे पढ़ने की तैयारी कर रही थी। अबिनाश ने उसे इस गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए मनाया और इस तरह सहजकुलिया में पहली ‘शिक्षा चाटोशाली’ की शुरुआत हुई।
पढ़े-लिखे युवा को जिम्मेदारी
अबिनाश ने बताया कि पहले के समय में गांव के एक बड़े पेड़ के नीचे चलने वाले स्कूल को चाटोशाली कहते थे। उन्होंने उसी तर्ज पर बहुत ही कम साधन के साथ अलग-अलग गांवों में स्कूल खोलना शुरू किया। चाटोशाली में वह बच्चों को रोज़ स्कूल आने, वापस आकर होमवर्क करने और पढ़ाई से जुड़ा रहना सिखाते हैं। अबिनाश ने हर गांव के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे युवा को वहां की चाटोशाली की जिम्मेदारी सौंप दी है।